ये क्या किया मैंने..
आंसुओं को आने से मैंने कब रोका
पर दिल को छलनी करता गया ये
समझता था पानी ही तो है बह जायेगा
रोते हुए खून कब बहा दिया मैंने..
तेरी यादों ने तडपा रखा है दिल को
इश्क का कोई मरहम न मिला
तेरी यादों को ही तो दफना रहा था
खुद को इश्क की आग में कब जला दिया मैंने..
कोई प्यार करता था मुझे बेपनाह
खो दिया उसको नासमझ मैं
झूठी जिंदगी बनाते बनाते
न जाने खुद को कब तबाह किया मैंने..
तू जाती क्यूँ नहीं मुझसे
यूँ मौत का घर है बना लिया खुद में
तड़पना तो आदत सी बन गयी है मेरी
जिंदगी को ये क्या सजा दिया मैंने..
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