बुधवार, 7 सितंबर 2011

की तू कभी तो लौटेगा..

की तू कभी तो लौटेगा..

आँखें नम हैं 
शहर के रस्ते की तरफ
निगाह गड़ाए बैठा हूँ 
तू कभी तो लौटेगा..

हर रोज 
तेरे पुराने घर से 
होते हुए गुजरता हूँ
मन में आस जगाये बैठा हूँ
तू कभी तो लौटेगा..

ये सोच
बातें होगी फिर से
कई नए सवाल बनाये बैठा हूँ
कुछ सपने सजाये बैठा हूँ
की तू कभी तो लौटेगा..

लोग कहते हैं 
जाने वाले वापस नहीं आते 
न जाने क्यूँ फिर भी
दिल को समझाए बैठा हूँ
की तू कभी तो लौटेगा..

यूँ तो 
तेरी दी हुई चीजें
हाल के बाढ़ में बह गयी 
पर तेरी याद बचाए बैठा हूँ 
की तू कभी तो लौटेगा..


इस गाँव में 
अब रहता कोई नहीं
अकेला मैं यहाँ
सब कुछ ठुकराए बैठा हूँ
की तू कभी तो लौटेगा..

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस गाँव में
    अब रहता कोई नहीं
    अकेला मैं यहाँ
    सब कुछ ठुकराए बैठा हूँ
    की तू कभी तो लौटेगा..

    बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं