सोमवार, 14 नवंबर 2011

इंजीनियरों की कहानी..क्या आप इंजीनियर हैं???

इंजीनियरों की कहानी..क्या आप इंजीनियर हैं???
(Add lines in this poem, there is lot of scope :))


पूरा सेमेस्टर मस्ती में बिता लेते हैं लोग
ये तो टैलेंट है कि तब भी 8ठी बना लेते है लोग
एक्साम के दिन की पिछली रात
सब्जेक्ट के बारे में पता लगाते हैं
नोट्स रात को जुगाड़ के सोते हैं
दिन में कवर देख के ही काम चला लेते हैं लोग
पढ़ते तो वही २-४ घंटे हैं सेमेस्टर में
एक्जाम हॉल में बैठ कर ही दिमाग लगा लेते हैं लोग
प्रोफेसरों के कठिन सवालों का असर कहाँ पड़ता है
अगल बगल २-३ अच्छे दोस्त बिठा लेते हैं लोग
वही जो ५-१० मिनट का समय मिलता है चीटिंग को
उसी समय में हुहा टाइप मचा लेते हैं लोग
बाथरूम के बहाने जाते हैं बाहर
और वहीँ जुगाड़ लगा लेते हैं लोग..

आलराउंडर बन्ने की खाहिश रखते हैं
१ दिन बास्केट बल, १ दिन टेनिस, १ दिन बैडमिन्टन 
सब खेल खेल जाते हैं 
अंत में लैपटॉप में डाउनलोड करवा लेते हैं लोग
खुद को समझ में जो न आई हो बात
उसे भी बहार वालों को समझा लेते हैं लोग
लड़की तो मिलती नहीं सबको
दूसरों की ही देख के मुस्कुरा लेते हैं लोग
रातों रातों में भटकते हैं इधर उधर
breakfast तो सपनों में खा लेते हैं लोग
क्लासेज तो २-४ ही कर पाते हैं 
फिर भी अटेंडेंस पूरा करवा लेते है लोग

किसी के बर्थडे पर जमकर मारते है
खुद के बर्थडे पर ख़ुशी खुशी मार खा लेते है लोग
जाते हैं खाना खाने संग साथियों के 
और मजाक में टुल हो जाते हैं
किसी रात दोस्तों के कंधे पे आते हैं
किसी रात उन्ही के कन्धों पर पनाह लेते हैं लोग
हँसते हैं, रोते हैं, गाते हैं, घूमते हैं संग
दोस्तों के सहारे कॉलेज लाइफ बिता लेते हैं लोग.. 

दोस्तों को उधर दिया तो माँगा करते हैं 
और खुद लिया तो कहाँ देते हैं लोग 

अंतिम के कुछ क्षणों में असाइनमेंट  की याद आती है
और उन्ही पलों में प्रोजेक्ट बना लेते हैं लोग
लैब रिपोर्ट तो मिल ही जाती है
viva में तो बस मजा लेते हैं लोग
क्लास में सोते हुए पकडे गए तो
रात में पढने का बहाना बनाते हैं  
क्लास नहीं आये कभी तो
मेडिकल में दोस्त से साइन करवा लेते हैं लोग ..

प्लेसमेंट की बात ही क्या करें
हँसते हँसते वो भी समय बिता लेते हैं लोग
जवाब दिया interview में तो ठीक
वरना अगले में तुक्का भिड़ा लेते है लोग
प्लेस नहीं हुए तो अपनी कंपनी बनाते हैं
हो गए तो उसी को ही डुबा लेते हैं लोग..

प्रोफ़ेसर सोचते हैं बंदा पास कैसे होगा और
देखते ही देखते साल का साल बिता लेते हैं लोग
ऐसे कर्मों को अंजाम देने के बाद ही
जाकर कहीं इंजीनियर कहलाते हैं लोग..

(Add lines in this poem, there is lot of scope :))

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

न जाने क्यूँ..

न जाने क्यूँ..

जो खफा रहूँ तुझसे,
कोशिश करूँ कोसने की 
पर मन से हर वक़्त
तेरे लिए दुआ जा निकलती  है..

बस एक झलक तेरी यादों की
लेने आँखें बंद करता हूँ
यादें सपनों के संग
न जाने कहाँ कहाँ जा निकलती है..

बातें तो तेरी करने से
खुद को रोकता हूँ पर
लब को बहकाए मन और
तेरी ही बातें आ निकलती है..

तेरे जाने के पल याद आते है कभी
तो खुद को संभालता हूँ
पर हर बार दिल से हारता हूँ,
हर बार आह आ निकलती है..

छुपा रखा हूँ गम को 
की किसी को खबर न लगे 
न जाने फिर ये बात
कैसे बड़ी दूर जा निकलती है..

सोमवार, 7 नवंबर 2011

तेरे जाने के बाद ..

तेरे जाने के बाद ..

हर दिन चिट्टी लिखता हूँ नयी, पर 
डाकिये के गली से भी गुजरता नहीं मैं
जो बोला तूने की चिट्ठी की राह न देखना मेरे जाने के बाद 

मुस्कान रखा हूँ चेहरे पर दर्द को ढंककर
जो कहा था तुमने हँसते रहना मेरे जाने के बाद 

आखें सूखी रखी हैं मैंने, पीड़ा सहकर भी
जो वादा किया था की रोयेंगे नहीं तेरे जाने के बाद 

भूलने की हर कोशिश कर रहा हूँ मैं 
पर भूलूं कैसे तुझे ये तो बता जाती 
बस कहकर गयी तू भूल जाना मुझे मेरे जाने के बाद

कहा था तुने राह नहीं देखना मेरी
मैंने राहों से कभी पूछा भी नहीं तेरे बारे में
पर एक बार आओ न जाना 
की जिंदगी हर पल सताती है तेरे जाने के बाद..