गुरुवार, 29 सितंबर 2011

ये क्या किया मैंने..

ये क्या किया मैंने..

आंसुओं को आने से मैंने कब रोका
पर दिल को छलनी करता गया ये  
समझता था पानी ही तो है बह जायेगा
रोते हुए खून कब बहा दिया मैंने..
तेरी यादों ने तडपा रखा है दिल को
इश्क का कोई मरहम न मिला 
तेरी यादों को ही तो दफना रहा था
खुद को इश्क की आग में कब जला दिया मैंने..
कोई प्यार करता था मुझे बेपनाह
खो दिया उसको नासमझ मैं
झूठी जिंदगी बनाते बनाते
न जाने खुद को कब तबाह किया मैंने..
तू जाती क्यूँ नहीं मुझसे 
यूँ मौत का घर है बना लिया खुद में   
तड़पना तो आदत सी बन गयी है मेरी  
जिंदगी को ये क्या सजा दिया मैंने..

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

26 रुपये कमाए है आपने, आप गरीब नहीं हैं ..

26 रुपये कमाए है आपने, आप गरीब नहीं हैं ..

सुन रहा था एक गरीब रेडियो
बच्चो के हाँथ में २ रोटी दिए 
कहकर कि 26 रुपये ही कमाई हुई है 
बाजार में महंगाई बढ़ी हुई है 
गरीब हैं हम आज इतना ही खाकर सोना है
पर समाचार आया 
26 रुपये कमाने वाले गरीब नहीं
अब तो वो अमीर था 
पर फिर भी खुश नहीं..

वो एक दिन बीमार पड़ा
रात में खाने के लिए कुछ लाया नहीं
कहा दवाई में खर्च हो गए पैसे
26 रुपये कमाई हुई थी आज
दवा इतनी सस्ती नहीं है..
सरकार कहती है
वो गरीब नहीं है..

बच्चो को किताबें न ले दो
चिल्लाकर कहता है वो
'जो 26 रुपये कमाकर आया है'
किताबें इतनी सस्ती नहीं है
सरकार कहती है 
वो गरीब नहीं है..

कपडे तो फटे पड़े हैं
पर नए लेने की जरूरत नहीं
न ही हैसियत है, वो कहता है 
कपडे इतने सस्ते नहीं है
सरकार कहती है
वो गरीब नहीं है..

घर का क्या करना
वो कहता है 
'जो 26 रुपये कमाकर आया है'
फुटपाथ पे रहते हैं..
कल जमींदार आया था कहने 
ये अपनी जमीं नहीं है
सरकार कहती है
वो गरीब नहीं है

त्यौहार अपने लिए नहीं बना
वो तो कलमाड़ी, राजा मानते हैं
वो कहता है 
26 रुपये हैं सब आज सूखी रोटी खाते हैं
मिठाई बाजार में सस्ती नहीं है
सरकार कहती है 
वो गरीब नहीं है..

वो मरा जिस दिन
घर में 26 रुपये थे 
पर लाश जलाने के लिए
लकड़ी नहीं मिली 
दुकानदार कहता है
लकड़ी इतनी सस्ती नहीं है 
सरकार कहती है
वो गरीब नहीं है..

सरकार का कोई ये कहने वाला
जरा 1 साल 26 रुपये प्रति दिन पे रहकर देखे तो 
शिक्षा, स्वास्थ्य,  घर और खाने का खर्च चलाकर देखे तो 
नोटों पे जिंदगी बिताने वालों को क्या पता
गरीब कौन है और कौन नहीं..
जिन्हें गरीबी की भनक भी नहीं है
वो कहते हैं एक गरीब, गरीब नहीं है..

रविवार, 11 सितंबर 2011

नेताओं का क्या करें ..

देश के भ्रष्ट नेताओं का क्या करें ..

कुछ बम विस्फोट हुए
कई मरे कई घायल हुए
लोगों का कहना है
मारना है तो नेताओं को मारो
दोहरे फायदे हैं इसके
हानि करो और देश संवारों..

आतंकियों ने कहा 
हम तो नेताओं के लिए कई बार बम लगाते हैं
पर कहाँ वो कभी समय पर आते हैं
उनके लिए बनाये बम से
आम आदमी घायल हो जाते हैं..

 दुसरे समूह ने कहा
इन नेताओं को तो तड़प तड़प कर मरना चाहिए
ऐसे गए गुजरे लोगों को
बम से मारने में हम भी शरमाते हैं..

तीसरे आतंकी समूह ने कहा
मारा तो जिन्दा लोगों को जाता है
मरे हुए को कोई बम कहाँ मार पाता है..

चौथे समूह ने कहा
अगर कोई मरे तो क्या बदल जायेगा
एक भ्रष्ट जायेगा फिर दूसरा आएगा..

बुधवार, 7 सितंबर 2011

की तू कभी तो लौटेगा..

की तू कभी तो लौटेगा..

आँखें नम हैं 
शहर के रस्ते की तरफ
निगाह गड़ाए बैठा हूँ 
तू कभी तो लौटेगा..

हर रोज 
तेरे पुराने घर से 
होते हुए गुजरता हूँ
मन में आस जगाये बैठा हूँ
तू कभी तो लौटेगा..

ये सोच
बातें होगी फिर से
कई नए सवाल बनाये बैठा हूँ
कुछ सपने सजाये बैठा हूँ
की तू कभी तो लौटेगा..

लोग कहते हैं 
जाने वाले वापस नहीं आते 
न जाने क्यूँ फिर भी
दिल को समझाए बैठा हूँ
की तू कभी तो लौटेगा..

यूँ तो 
तेरी दी हुई चीजें
हाल के बाढ़ में बह गयी 
पर तेरी याद बचाए बैठा हूँ 
की तू कभी तो लौटेगा..


इस गाँव में 
अब रहता कोई नहीं
अकेला मैं यहाँ
सब कुछ ठुकराए बैठा हूँ
की तू कभी तो लौटेगा..

मंगलवार, 6 सितंबर 2011

तू है तो मानता हूँ खुदा, खुदा क्यूँ है..

तू है तो मानता हूँ खुदा, खुदा क्यूँ है..

किन शब्दों में बयां करूँ तुझे
किन पन्नों पे तेरी कीमती यादें रखूं 
किस आवाज में तेरी हँसी पिरोउं 
किन एहसासों में मुलाकातें लिखूं..

इक दुविधा में हूँ 
की तेरे चेहरे की चमक में सूरज फीका क्यूँ है
तेरी मस्ती में उलझा हवा का झोंका क्यूँ है
तुझे देखने ये चाँद तारे आये हैं, 
नहीं तो बादलों से देखो वो परेशां क्यूँ हैं..

हर शायर परेशां है तेरे हुस्न से 
एक तू है न जाने इस जहाँ में उतरा क्यूँ है
नज़रें उठती नहीं हैं तेरी,
मानता हूँ कई जिंदगी बचती है
पर हम तो वो कातिलाना जिंदगी ही चाहते है
नजरें उठा अपनी, कुछ और सोचता क्यूँ हैं..

तू तो खुदा की काबिलियत का आइना है..
यूँ तो खुदा को मानने वालों से मैं नहीं
पर तू है तो मानता हूँ खुदा, खुदा क्यूँ है..

शनिवार, 3 सितंबर 2011

कुछ पंक्तियाँ..

कुछ पंक्तियाँ..

"सोचता था कभी कि क्या करूँ मैं 
तुझे पास रखूं या खुद से दूर करूँ मैं

अब समझ आया की मेरे बस में तो कुछ भी नहीं ..."

"पलकें जो तब उठाई थी तुमने 
महफ़िल से गम सारा दूर हो गया..
                      आँखों की तरफ तेरे देखा भी जिसने
हर वो शख्स नशे में चूर हो गया.."

                       "आईने ने देखा जो खुद में तुमको
वो बोलने पे मजबूर हो गया..
                        जो रस्ते पे निकली तू एक दिन
हुस्न तेरा शहर में मशहूर हो गया.."

"तेरी हंसी में सुकूँ हैं, मस्ती है,  मजा है
पर बता दिया कर कि तेरे हसने की वजह क्या है.. "

"जो मोहल्ले से - बुजुर्गों का जनाजा निकला
मैं समझ गया तू शहर में वापस गयी है.."

 

"कल तेरे हसने की आवाजों से मोहल्ला गूंज रहा था
अब घायलों के लिए अस्पताल में जगह नहीं है.."