शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

ए वक्त के उड़ते परिंदे..


ए वक्त के उड़ते परिंदे॥

वक़्त के उड़ते परिंदे
लौट आओ इस जहाँ में
छुटते जो रिश्ते हैं अब
जीना है इनमें मुझे।


अब मिलाके मुझको उनसे
दिल को उम्मीदों में रखा
क्यूँ आया था इस जहाँ में
जब लौटना था तुझे।

ये फिजायें ये नजाकत
इन हवाओं की शरारत
किस जहाँ में मिलेगी
इतनी सच्ची मुहब्बत।

किस जहाँ में ये अबद्धता
कहाँ की वादी में ये रंगत होगी
जिंदगी को जीना सिखाये
कहाँ के रिश्तों में इतनी ताकत होगी।

तू समझता है ये बातें
फिर क्यूँ विदाई मांगता है
लौट आ तू इस जहाँ में
इन रिश्तों के बिना जीवन में क्या है?

मीठी बोली में चहचहाना
रोजाना किस्से सुनना सुनाना
उन मीठे लफ्जों में जो थी बातें
और किस जहाँ में मिलेगी?

यूँ बादलों में कभी छुप जाना
कभी उनके संग रोना और कभी उन्हें चुप कराना
ऐसे ये रिश्ते निराले
इसके बिन तू क्या करेगा?

नदियों का वो मीठा पानी
मीठे फल के ये दावत
इतना प्यारा सा जहाँ
क्यूँ छोड़ कर है जा रहा तू?

लौट आ तू लौट आ तू
ए वक्त के उड़ते परिंदे..

सोमवार, 24 जनवरी 2011

जो ये कहते हैं ...

जो ये कहते हैं ...

जो कहते हैं हवाएँ तो प्राणहीन होती हैं

कभी तेरी साँसों के पास जाकर देखे तो,

जो कहतें हैं कि इस प्यार में रखा क्या है?

कभी तुम से प्यारे की मुहब्बत के प्यास को पाकर देखे तो,

जो कहते हैं फिजाओं के रंगत में कोई बात नहीं होती

कभी तेरे संग झूमती फिजाओं की पनाह में आकर देखे तो,

जो कहते हैं कि बहुत व्यंजनों में खाने काम मजा होता है

कभी तेरे हाँथों से सूखी रोटी खाकर देखे तो,

जो कहते हैं जिंदगी बेमजा है

कभी जिंदगी में तेरा अंश मिलाकर देखे तो,

जो कहते हैं जिंदगी में अब वो ख़ुशी कहाँ है

कभी तेरे संग मुस्करा कर देखे तो,

जो कहते हैं कि तू चीज क्या है?

कभी किसी मुसव्विर से तुझ सा कोई और बनवाकर देखे तो...

खुदा भी तुझे तराश कर तुझपे फ़िदा है

कभी कोई तुझे रुलाकर देखे तो॥


मुसव्विर : artist

बुधवार, 19 जनवरी 2011

तेरे बिना

तेरे बिना

दर्द दिल का अब आँखों में उतरता नहीं है,
नशा वो जिंदगी का तेरे बिना चढ़ता नहीं है,
दिलों-जाँ से कोशिश कर ली मैंने,
कैसा ये दिल है कि संभालता नहीं है
वक़्त बदला, हालात बदले,
कई गए मेरी जिंदगी से, कई नए है,
पर जाने क्यूँ जो जगह थी मेरे दिल में तेरी,
वो कभी बदलता नहीं है
हर पल में मेरा जीवन जलता है,
कभी गिरता कभी संभालता है,
तेरी राह में बैठा हूँ अब भी,
कि अब धड़कन तेरे बिना चलता नहीं है

सोमवार, 10 जनवरी 2011

ऐसी क्यों होती है कोई यात्रा

ऐसी क्यों होती है कोई यात्रा

मुझे तो लगता है आपकी यात्रा मुझसे कुछ कम नहीं रही होगी,
पर फिर भी हम अपनी दास्ताँ सुनाते
हैं,
जल्दी में बड़ी योजना बनी कि जयपुर जाना है,
पहले प्रॉब्लम था रिजर्वेसन करवाना
है,
साईट पे चेक किया तो उपलब्ध १०० दिखा रहा
था,
इन्टरनेट रिजर्वेसन सिस्टम में कुछ दिक्कतें चल रही थी,
और मन में काउन्टर में जाने में आलस रहा
था,
kgpian की तरह हर काम अंतिम समय में निपटाने की थी
आदत,
जाने के दिन पहले मुझे मिली थोड़ी
फुर्सत,
पहुँच गया मैं डोलते डोलते काउन्टर
पे,
वहाँ २०-२५ लोग पहले से लाइन में खड़े
थे,
वो भी सब मुझसे हट्ठे कठ्ठे और बड़े
थे,
लाइन में खोजने के बाद कोई दूर का दोस्त या रिश्तेदार भेंटा,
मैं बोला दिल पे पथ्थर रख के लाइन में खड़ा हो जा
बेटा,
थका हारा काउन्टर पे पहुंचा तो लंच टाइम
गया,
२० मिनट मेरा वही खा
गया,
काउन्टर वाला खा के लौटा तो मैंने फॉर्म बढाया,
उसने उस ट्रेन पे नो रूम
बताया,
मैंने बोला कोई भी ट्रेन के सीट देखो
दादा,
जयपुर बस पहुंचना है दूर करो ये
बाधा,
उसने कंप्यूटर में बहुत दिमाग
भिड़ाया,
एक तो पीछे वालों से गाली खाया, ऊपर से ४२० का वेटिंग पाया।

दिन तो तूफ़ान के पहले की शांति थी उसके बाद:
बजे की ठंडी सुबह में मैं पहुंच गया
स्टेशन,
किसी तरह कन्फर्म हुआ था
रिजर्वेसन,
सुचना हुई कि ट्रेन आधे घंटे देर से
आएगी,
मैं सोचा इसमें बोलने कि क्या बात थी घर से यही सोच के जनता आती है,
कभी कभी तो गलती से ट्रेनें सही समय पर पहुँच जाती
हैं,
फिर एक घंटे बाद प्रसारण हुआ कि ट्रेन घंटे देर से चल रही है,
मैं सोचा अभी ट्रेन इंडियन रेलवे
के सही समय का पालन कर रही है,
फिर ट्रेन अनिश्चित काल के लिए लेट हो
गयी,
पर कमाल देखिये ट्रेन घंटे बाद ही स्टेशन पहुँच गयी,
मैं ख़ुशी ख़ुशी दौड़ते दौड़ते ट्रेन पे चढ़
गया,
अन्दर जाके अपनी सीट पे बैठे एक नवजवान से लड़ गया,
कमाल ये कि उसकी टिकट में भी सीट का नंबर S21 - 98
था,
मैंने बोला देखो मैं टीटी को बताऊंगा कि तुम नकली टिकट लाते हो,
और बेशरम, मेरी टिकेट को फर्जी बताते
हो,
अंत में मैं टीटी को बुलाया ,
और हम दोनों ने अपना अपना टिकेट आगे बढाया,
टीटी ने भी मिनट दिमाग
भिड़ाया,
फिर मुझे ट्रेन के बहार लेके
आया,
बोला भाईसाहब ये 8706 up की ट्रेन है,
आपकी 8706 डाउन की टिकट
है,
अंत में मेरा ट्रेन 5 घंटे और लेट से आया ,
मैं - लोगों से ट्रेन नंबर 8706 डाउन पक्का कराया।

ख़ुशी की बात की एक सुन्दर बंदी अपने 7-8 साल के भाई से साथ सामने बैठी थी,
मान लो मैं अगर उसे intensity = I से देख रहा था,
तो उसका भाई मुझे 5*I से देख रहा
था,
मैंने सोचा उस बच्चे के दिमाग का इंजन गरम हुआ तो लोड बाप को दे देगा,
तो फिर उसके बापू का लोड कौन फ़ोकट में
लेगा,
सो मैं अपने सामान में चेन लाक
लगाया,
ऊपर जाके सोया बड़ा अच्छा नींद
आया,
सुबह बजे नींद खुली तो खुद को kgp में ही पाया,
लोगों से पूछा भाई ये किसकी गलती
है,
बताया गया kgp टाटा के रस्ते में रात में ट्रेन नहीं चलती है,
फिर मैं सोया और शाम को नीचे आया तो मेरा सामान नहीं दिख रहा था,
मेरे सामान में लगा चेन खुले ताले के साथ लटक रहा
था,
रिपोर्ट लिखाने गया तो बोला जयपुर में
लिखवाना,
ट्रेन चल दी है जाओ वहीँ पे सब
समझाना,
जैसे तैसे हम जयपुर से घंटे ही दूर
थे,
ट्रेन रुकी क्यूँकी ड्राईवर मजबूर
थे,
पता चला गुज्जर पटरी पे खड़े
हैं,
बस वे अपनी मांग पर अड़े
हैं,
पता चला नेता और गुर्जरों में अभी पटरी पर ही बात चल रही थी,
अपनी फंडे देने की आदत अन्दर जाग रही
थी,
मैं गया और कुछ देर में बात सलट
गयी,
मैंने कहा कि ये तो हर साल का नाटक
है,
पटरी तो हर साल इस समय में तुम लोग जाम करते हो,
तो हम तुम लोगों के जाम करने के लिए एक अलग सिंगल लाइन बनवायेंगे,
और रोकने की फीलिंग लाने के लिए एक दो खाली ट्रेन उधर से पास
करवाएंगे,
जब जब कोई खेती बारी का काम नहीं हो उसकी पटरी पे
आना,
ट्रेन पास करवाना हो तो बस एक फ़ोन
घुमाना,
नेता कटे,पटरी से लोग हटे, और हम पहुंचे जयपुर।

सोचा क्या FIR करवाना सामान का, कुछ मिलेगा तो नहीं,
इंडियन रेलवे जहाँ है इंडियन पुलिस भी
वहीँ,
ऐसे भी मेरे lappi और मोबाइल का तो postmartum हो गया होगा,
जो भी आसार थे कभी मिलने के वो भी अब गया होगा,
किसी तरह इंडियन traffic का सामना करके काम ख़तम करवाया,
और वापस आने लिए flight का टिकट
कटवाया,
किस्मत देखो उस दिन बरफ पड
गयी,
सारी ट्रेन गयी पर flight एक भी नहीं गयी,
अगले दिन flight कोलकाता में क्रैश लैंड हुआ।

किसी तरह से हम यात्रा से जिन्दा वापस आये,
और कान पकड़ के १० बार उठक बैठक
लगाये,
भगवान के दर्शन किये और यही
मनाये,
की ऐसी यात्रा फिर कभी आये।