बुधवार, 24 अगस्त 2011

जिंदगी को अपना बनाते चलो..

जिंदगी को अपना बनाते चलो..

दिल की वो आग बुझाते चलो 
रूह को अपने समझाते चलो..

कहीं खो न जाये तेरी यादों में मन 
जिंदगी को रास्ता दिखाते चलो..

आशा के सुर सजाओ सब मे 
निराशा को दूर भगाते चलो..

दर्द तो हर दिल का फ़साना है आज कल 
इंसान हो दर्द में मुस्कराते चलो..

भूल के सन्नाटे बीती रातों के
राह में महफ़िल बनाते चलो..


अपने गम में किसी और को न उलझाओ
गम को बाहों में रखो, खुशियाँ लुटाते चलो..

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

पास आओ न एक बार ए जाना ..

पास आओ न एक बार ए जाना ..

यूँ तो तेरी यादों से हम दूर जा रहे हैं,
खुद को फिर भी कसमकस में पा रहे हैं,
कहाँ है आजादी तेरी यादों से हमें ,
तनहा हो रहे हैं खुद को तडपा रहे हैं ..

रोयें या हसें, कुछ समझ नहीं आता, 
आँखों की नमी को हंस कर दबा रहे हैं,
पास आओ न एक बार ए जाना ,
तेरी आस में बड़ी मुद्दत से जिए जा रहे हैं..

तेरी यादों में जिंदगी है या दर्द का साया ,
किसे फ़िक्र है हम तो यादों में तुम्हे लाये जा रहे हैं ,
कभी खुली आँखों से कभी बंद आँखों से,
सपने तो हम बड़े अरसे से सजाये जा रहे हैं..

हर रोज हम तुम्हे भुला रहे हैं
या प्यार तेरे लिए बढ़ाये जा रहे हैं..
हर रोज एक ही बात बदल बदल कर
खुद को समझाए जा रहे हैं..

ये सांसें कांपती हैं दिल में जाने के पहले ,
दिल को कुछ यूँ हम जलाये जा रहे हैं..
पास आओ न एक बार ए जाना ,
कब से तेरी आस में पलकें बिछाये जा रहे हैं..

शनिवार, 6 अगस्त 2011

जिंदगी मौत के गीत गाता है..

जिंदगी मौत के गीत गाता है.. 

तुझसे जो रिश्ते टूट गए
जिंदगी अब मौत के गीत गाता है
कभी पुराने सपने तोड़ता है 
कभी नए झूठे ताजमहल बनाता है..
कभी समय को पीछे ले जाता है
कभी दुःख के बांध को तोड़ता है
और गम में बह जाता है 
जिस चाँद से कभी बातें करता था
अब उसी से आँखें चुराता है
जिस हवाओं की खुशबू से खुश होता था
अब उन हवाओं से मन डर जाता है
रस्ते तो उलझ गए हैं बहुत 
जिधर जाता है जिंदगी फंस जाता है
बादलों की गहन बारिश में भीगकर भी 
कोई प्यासा तड़प जाता है
मुस्कराना तो जैसे पेशा बन गया है
दिल से कहाँ कोई खिलखिलाता है
तेरी नज़र में कोई फर्क नहीं पड़ता
पर दिल को समझो तो समझ आता है
जिंदगी जीता है झूठी जिंदगी
और मौत के गीत गाता है.
जंजीरों में बंधकर भी 
न जाने क्यूँ मुस्कराता है..

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

किसको क्या बतलाऊँ मैं ..

किसको क्या बतलाऊँ मैं ..

इन कागज के पन्नों पर कितना दर्द लिखूं
इस कलम को क्या क्या बताऊँ मैं
दिल में अरमा कई हैं, है ये प्यार से भरा,
लिख लिख कर कितना जताऊँ मैं..

इस चाँद से कितनी बातें करूँ
इन हवाओं को क्या क्या समझाऊँ मैं
खुद के टुकड़े टुकड़े हो रहे हैं
पर हर पल कितना आंसू बहाऊँ मैं..

कभी सोचूं कभी रोकूँ खुद को
कभी तुझको पास लाऊँ मैं
सपनों का क्या करूँ 
निद्रा को कैसे समझाऊं मैं..

यहाँ तो लोग कई हैं चारों तरफ  
रोने को कहाँ जाऊं मैं
तेरी यादों की तड़प में डूब गया है दिल
अब कितना मुस्कुराऊँ मैं..

किसको क्या बतलाऊँ मैं..