रविवार, 25 दिसंबर 2011

छोड़ दी हमनें वो राहें ..

छोड़ दी हमनें वो राहें ..

टुकड़े टुकड़े दिन बीते
रातें रोई मेरी तड़प कर
फैज की बात सोचे कौन मुहब्बत में
आँखों पे आंसू पर लब पे दुआ है..

नज़रें, अदाएं कातिल है तेरी
मरते देखा है कईयों को हमनें
तू पत्थर दिल है पर,
कभी दिखा नहीं  
की जिंदगी से तेरा क्या वास्ता है..

खाबों ने पाँव रखे तेरी दुनिया में
फिसले और टूट गए
हमने चुनने की कोशिश नहीं की
कहा अब इन खाबों में रखा क्या है..

जलती बुझती आँखों में
जो जिंदगी बीती है मेरी
देखने की कोशिश है अब
की इन बेचैनियों के पार क्या है..

गम ए दिल को समझाया हमें
मानता है वो अब, की तू बेवफा है..
खुश रह तू दूर मुझसे रहकर अकेला 
छोड़ दी हमनें वो राहें जहाँ तेरी दुनिया है..


शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

कुछ पंक्तियाँ..

कुछ पंक्तियाँ..

"ये गहने दुकानों की सेजों पर कितने खुबसूरत थे, 
तूने जो पहना, तेरी खूबसूरती के आगे फीके पड़ गए हैं.."

"पुछा मैंने ए जिंदगी इस मुहब्बत में रखा क्या है 
कहा जिंदगी ने, सोच तेरे मुस्कराने की वजह क्या है.."

"मन जो बातें तेरी करता है 
कहता हूँ मैं रुक जा तू
क्यूँ मुझको हर बार रुला देता है
क्यूँ खुद, खुद को भुला देता है.."


"जिंदगी तो बस तेरी आंखों में देखी है हमनें 
दूर न जा ए सनम की इन साँसों का क्या करूँगा मैं.."

"तेरे हुस्न की खबर तो उन वादियों को भी है,
जहाँ सूरज की किरणों, हवाओं का आना जाना नहीं..
वो भी चिंता करते हैं तेरी खुशियों की
जिनका अपना कोई ठिकाना नहीं..
तू आ गिरी है किसी और ही दुनिया में जानम
ये परीयों की दुनिया नहीं, ये तेरा जमाना नहीं.."


सोमवार, 5 दिसंबर 2011

कुछ पंक्तियाँ..

कुछ पंक्तियाँ..

"अपने हुस्न को जो तुमने हया के आँचल में ढक रखा है
तेरी खूबसूरती का असर यूँ कहीं ज्यादा गहरा है.."

"आज आइना मुझसे मेरा परिचय पूछ रहा था
कल तक देखता था जो मुझको, खुद में

आज वो ही पहचानने से इनकार करता है.."

"तूने आंसू बहाए हैं जितने मैंने कहाँ बहाए होंगे
पर तेरे हर आंसू पे मेरा लहू बहता था.."

"जनाब उनकी गोद में कुत्ते को देख देखकर
मोहल्ले के लड़के अपनी किस्मत पे रोते हैं.."



"यूँ तो बहौत दीवाने (लफंगे) तेरी गलियों से होकर गुजरे
तेरे दिल के दरवाजे तक पहुँचने वालों में तो हम है..
(यानि हम भी कभी लफंगे हुआ करते थे :) )"

"खुद की आँखों में धुल झोंक कर 
खुद को अलग दुनिया दिखाते रहे
जहन को हर वक़्त पता था
ये खेल महंगा पड़ेगा मुझे..
"अब तो मैंने खो दिया तुझे.." "

"तेरे लिए ये बस बहता खून का कतरा होगा
मेरे लिए तो ये तुझे भुलाने की कोशिश है

जो हर कतरे में आ बसा है.."


सोमवार, 14 नवंबर 2011

इंजीनियरों की कहानी..क्या आप इंजीनियर हैं???

इंजीनियरों की कहानी..क्या आप इंजीनियर हैं???
(Add lines in this poem, there is lot of scope :))


पूरा सेमेस्टर मस्ती में बिता लेते हैं लोग
ये तो टैलेंट है कि तब भी 8ठी बना लेते है लोग
एक्साम के दिन की पिछली रात
सब्जेक्ट के बारे में पता लगाते हैं
नोट्स रात को जुगाड़ के सोते हैं
दिन में कवर देख के ही काम चला लेते हैं लोग
पढ़ते तो वही २-४ घंटे हैं सेमेस्टर में
एक्जाम हॉल में बैठ कर ही दिमाग लगा लेते हैं लोग
प्रोफेसरों के कठिन सवालों का असर कहाँ पड़ता है
अगल बगल २-३ अच्छे दोस्त बिठा लेते हैं लोग
वही जो ५-१० मिनट का समय मिलता है चीटिंग को
उसी समय में हुहा टाइप मचा लेते हैं लोग
बाथरूम के बहाने जाते हैं बाहर
और वहीँ जुगाड़ लगा लेते हैं लोग..

आलराउंडर बन्ने की खाहिश रखते हैं
१ दिन बास्केट बल, १ दिन टेनिस, १ दिन बैडमिन्टन 
सब खेल खेल जाते हैं 
अंत में लैपटॉप में डाउनलोड करवा लेते हैं लोग
खुद को समझ में जो न आई हो बात
उसे भी बहार वालों को समझा लेते हैं लोग
लड़की तो मिलती नहीं सबको
दूसरों की ही देख के मुस्कुरा लेते हैं लोग
रातों रातों में भटकते हैं इधर उधर
breakfast तो सपनों में खा लेते हैं लोग
क्लासेज तो २-४ ही कर पाते हैं 
फिर भी अटेंडेंस पूरा करवा लेते है लोग

किसी के बर्थडे पर जमकर मारते है
खुद के बर्थडे पर ख़ुशी खुशी मार खा लेते है लोग
जाते हैं खाना खाने संग साथियों के 
और मजाक में टुल हो जाते हैं
किसी रात दोस्तों के कंधे पे आते हैं
किसी रात उन्ही के कन्धों पर पनाह लेते हैं लोग
हँसते हैं, रोते हैं, गाते हैं, घूमते हैं संग
दोस्तों के सहारे कॉलेज लाइफ बिता लेते हैं लोग.. 

दोस्तों को उधर दिया तो माँगा करते हैं 
और खुद लिया तो कहाँ देते हैं लोग 

अंतिम के कुछ क्षणों में असाइनमेंट  की याद आती है
और उन्ही पलों में प्रोजेक्ट बना लेते हैं लोग
लैब रिपोर्ट तो मिल ही जाती है
viva में तो बस मजा लेते हैं लोग
क्लास में सोते हुए पकडे गए तो
रात में पढने का बहाना बनाते हैं  
क्लास नहीं आये कभी तो
मेडिकल में दोस्त से साइन करवा लेते हैं लोग ..

प्लेसमेंट की बात ही क्या करें
हँसते हँसते वो भी समय बिता लेते हैं लोग
जवाब दिया interview में तो ठीक
वरना अगले में तुक्का भिड़ा लेते है लोग
प्लेस नहीं हुए तो अपनी कंपनी बनाते हैं
हो गए तो उसी को ही डुबा लेते हैं लोग..

प्रोफ़ेसर सोचते हैं बंदा पास कैसे होगा और
देखते ही देखते साल का साल बिता लेते हैं लोग
ऐसे कर्मों को अंजाम देने के बाद ही
जाकर कहीं इंजीनियर कहलाते हैं लोग..

(Add lines in this poem, there is lot of scope :))

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

न जाने क्यूँ..

न जाने क्यूँ..

जो खफा रहूँ तुझसे,
कोशिश करूँ कोसने की 
पर मन से हर वक़्त
तेरे लिए दुआ जा निकलती  है..

बस एक झलक तेरी यादों की
लेने आँखें बंद करता हूँ
यादें सपनों के संग
न जाने कहाँ कहाँ जा निकलती है..

बातें तो तेरी करने से
खुद को रोकता हूँ पर
लब को बहकाए मन और
तेरी ही बातें आ निकलती है..

तेरे जाने के पल याद आते है कभी
तो खुद को संभालता हूँ
पर हर बार दिल से हारता हूँ,
हर बार आह आ निकलती है..

छुपा रखा हूँ गम को 
की किसी को खबर न लगे 
न जाने फिर ये बात
कैसे बड़ी दूर जा निकलती है..

सोमवार, 7 नवंबर 2011

तेरे जाने के बाद ..

तेरे जाने के बाद ..

हर दिन चिट्टी लिखता हूँ नयी, पर 
डाकिये के गली से भी गुजरता नहीं मैं
जो बोला तूने की चिट्ठी की राह न देखना मेरे जाने के बाद 

मुस्कान रखा हूँ चेहरे पर दर्द को ढंककर
जो कहा था तुमने हँसते रहना मेरे जाने के बाद 

आखें सूखी रखी हैं मैंने, पीड़ा सहकर भी
जो वादा किया था की रोयेंगे नहीं तेरे जाने के बाद 

भूलने की हर कोशिश कर रहा हूँ मैं 
पर भूलूं कैसे तुझे ये तो बता जाती 
बस कहकर गयी तू भूल जाना मुझे मेरे जाने के बाद

कहा था तुने राह नहीं देखना मेरी
मैंने राहों से कभी पूछा भी नहीं तेरे बारे में
पर एक बार आओ न जाना 
की जिंदगी हर पल सताती है तेरे जाने के बाद..

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

आदमी इतना, घबराता क्यूँ है..

आदमी इतना, घबराता क्यूँ है..


आदमी इतना घबराता क्यूँ है
फल की इच्छा करता है
फिर कर्म करना भूल जाता क्यूँ है..

मेहनत करता नहीं जितनी
उससे ज्यादा सपने सजाता क्यूँ है
कितनी रोशन है जिंदगी ये
फिर इसे बोझ बनाता क्यूँ है..

आदमी इतना, घबराता क्यूँ है..

कुछ वक़्त तो लड़ने के होते हैं
खुदा से संघर्ष मुक्त जिंदगी मनाता क्यूँ है
बिना घिसे तो हीरा भी नहीं चमकता
फिर घिसने से खुद को भगाता क्यूँ है..

हर राह मन की मिले तो जिंदगी क्या है
पथरीले राहों में डगमता क्यूँ है
गिरना तो उठने के लिए होता है
फिर गिरकर आंसू बहता क्यूँ है..

आदमी इतना, घबराता क्यूँ है..

दूसरों को देख खुद को छोटा समझता है कभी
कभी गलत राहों में जाता क्यूँ है
थोडा वक़्त लगता है पर खुश होती है जिंदगी
फिर अपना धीरज खो जाता  क्यूँ है..

कोई जादू की छड़ी तो होती नहीं
सब तो इस जहाँ में एक से आते हैं
फिर कोई मुश्किलों के पर्वत चढ़ जाता है
कोई गिरने से डर जाता क्यूँ है
गिरकर फिर चढ़ने की हिम्मत रखे 
देखने वालों पे जाता क्यूँ है..
किसी और की बात पे आता क्यूँ है..

आदमी छोटी सी जिंदगी में 
इतना घबराता क्यूँ है..
जिंदगी पाने की खाहिश में
जिंदगी जीना भूल जाता क्यूँ है..

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

कैसे कोई फिर प्यार करेगा..

कैसे कोई फिर प्यार करेगा..


प्रेम रस से दूर ह्रदय रख
सोचा हमने जग बदलेगा
दूरी जो बढती जाएगी
कब तक तुझको प्यार करेगा..

जख्मों पे मरहम ले बैठा
यादों को समझाया मैंने 
छलनी काया भी बदलेगी  
कब तक तू मुझ पर वार करेगा..

चंदा बातें अब न करता
तारों को बादल ने घेरा 
नयी राह, नया माहौल, सोचा
नया जीवन संचार करेगा..

ऋतू पतझड़ की बीत यहाँ
बहार कभी आएगी
ये टूटा हुआ मुरझाया चेहरा  
खुद को फिर तैयार करेगा..

बीच सागर में डूब रहा मन
उठती लहरें बढती धड़कन 
साथ दुआओं के बैठा हूँ
नैया कब सागर पार करेगा..

जाम लिए हाथों में सोचूं
पीकर कोई क्या बदलेगा
जीवन तो देखूं बदलते
ये क्षण भर को अंधकार करेगा..

रातों भर जलना और बुझना 
ख़ामोशी में बातें करना
खुद, खुद से अलग है इस कदर 
क्या कोई दीवार करेगा.. 

डरता है मन 
मरने से हर दिन
तड़प, जो दे ऐसी आजदी
क्या कोई कारागार करेगा..

अंजाम अगर कुछ ऐसा हो तो 
कैसे कोई फिर प्यार करेगा..

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

हम देश बनाना भूल गए..

हम देश बनाना भूल गए..


जिन्होंने देश की आजादी लड़ी  
उन्हें आजाद कराना भूल गए
पुरानी हटा, नयी जंजीरें लगा दी  
जंजीर हटाना भूल गए.

गाँधी ने देखे थे सपने 
लोगों ने जान लगायी थी
अंग्रेजों को भगा दिया पर
सपनों को हकीकत बनाना भूल गए.

भूखा अब भी भूखा है
घर बार नहीं है कितनों के
कुछ को देश ने महल दिया
कुछ की कुटिया बनाना भूल गए.

कई बांध बने, कई कारखाने 
कितनों को बिजली और आराम दिया 
पर जमीनों से जिन्हें बेदखल किया
उनकी टूटी जिंदगी सजाना भूल गए.

धनी तो संमृद्ध हुए
हम दलितों को सम्मान दिलाना भूल गए
बलात्कार और मौत के किस्से बेहिसाब हैं
लोगों को बेहतर जिंदगी दिलाना भूल गए.

कई अस्पताल बने, कई स्कूल बने
पर बिन पैसो के कोई कहाँ 
बड़े अस्पताल या स्कूल में जा पाता है
स्वास्थ्य और शिक्षा को सही दिशा दिखाना भूल गए.

भटकता रहा देश रास्तों में कई
और हम असली ठिकाना भूल गए
भारत के नागरिक तो बने हम
पर नागरिकता निभाना भूल गए.

शांति की बातें होती थी कभी
पर हम प्रेम बढ़ाना भूल गए
अब हम तो पैसे बनाने में लगे है
हम रिश्ते बनाना भूल गए.

भ्रष्टाचार से लिप्त है राजनीति  
कई रावण आये और गए
रामराज्य की बातें की हमनें 
पर राम बनाना भूल गए..

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई
भाई न बन पाए यहाँ 
धर्म को आँखें बंद कर देखा
दूसरों का सम्मान किये बिना 
टुकड़ों में जीते जीते 
हम देश बनाना भूल गए..

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

ये क्या किया मैंने..

ये क्या किया मैंने..

आंसुओं को आने से मैंने कब रोका
पर दिल को छलनी करता गया ये  
समझता था पानी ही तो है बह जायेगा
रोते हुए खून कब बहा दिया मैंने..
तेरी यादों ने तडपा रखा है दिल को
इश्क का कोई मरहम न मिला 
तेरी यादों को ही तो दफना रहा था
खुद को इश्क की आग में कब जला दिया मैंने..
कोई प्यार करता था मुझे बेपनाह
खो दिया उसको नासमझ मैं
झूठी जिंदगी बनाते बनाते
न जाने खुद को कब तबाह किया मैंने..
तू जाती क्यूँ नहीं मुझसे 
यूँ मौत का घर है बना लिया खुद में   
तड़पना तो आदत सी बन गयी है मेरी  
जिंदगी को ये क्या सजा दिया मैंने..

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

26 रुपये कमाए है आपने, आप गरीब नहीं हैं ..

26 रुपये कमाए है आपने, आप गरीब नहीं हैं ..

सुन रहा था एक गरीब रेडियो
बच्चो के हाँथ में २ रोटी दिए 
कहकर कि 26 रुपये ही कमाई हुई है 
बाजार में महंगाई बढ़ी हुई है 
गरीब हैं हम आज इतना ही खाकर सोना है
पर समाचार आया 
26 रुपये कमाने वाले गरीब नहीं
अब तो वो अमीर था 
पर फिर भी खुश नहीं..

वो एक दिन बीमार पड़ा
रात में खाने के लिए कुछ लाया नहीं
कहा दवाई में खर्च हो गए पैसे
26 रुपये कमाई हुई थी आज
दवा इतनी सस्ती नहीं है..
सरकार कहती है
वो गरीब नहीं है..

बच्चो को किताबें न ले दो
चिल्लाकर कहता है वो
'जो 26 रुपये कमाकर आया है'
किताबें इतनी सस्ती नहीं है
सरकार कहती है 
वो गरीब नहीं है..

कपडे तो फटे पड़े हैं
पर नए लेने की जरूरत नहीं
न ही हैसियत है, वो कहता है 
कपडे इतने सस्ते नहीं है
सरकार कहती है
वो गरीब नहीं है..

घर का क्या करना
वो कहता है 
'जो 26 रुपये कमाकर आया है'
फुटपाथ पे रहते हैं..
कल जमींदार आया था कहने 
ये अपनी जमीं नहीं है
सरकार कहती है
वो गरीब नहीं है

त्यौहार अपने लिए नहीं बना
वो तो कलमाड़ी, राजा मानते हैं
वो कहता है 
26 रुपये हैं सब आज सूखी रोटी खाते हैं
मिठाई बाजार में सस्ती नहीं है
सरकार कहती है 
वो गरीब नहीं है..

वो मरा जिस दिन
घर में 26 रुपये थे 
पर लाश जलाने के लिए
लकड़ी नहीं मिली 
दुकानदार कहता है
लकड़ी इतनी सस्ती नहीं है 
सरकार कहती है
वो गरीब नहीं है..

सरकार का कोई ये कहने वाला
जरा 1 साल 26 रुपये प्रति दिन पे रहकर देखे तो 
शिक्षा, स्वास्थ्य,  घर और खाने का खर्च चलाकर देखे तो 
नोटों पे जिंदगी बिताने वालों को क्या पता
गरीब कौन है और कौन नहीं..
जिन्हें गरीबी की भनक भी नहीं है
वो कहते हैं एक गरीब, गरीब नहीं है..

रविवार, 11 सितंबर 2011

नेताओं का क्या करें ..

देश के भ्रष्ट नेताओं का क्या करें ..

कुछ बम विस्फोट हुए
कई मरे कई घायल हुए
लोगों का कहना है
मारना है तो नेताओं को मारो
दोहरे फायदे हैं इसके
हानि करो और देश संवारों..

आतंकियों ने कहा 
हम तो नेताओं के लिए कई बार बम लगाते हैं
पर कहाँ वो कभी समय पर आते हैं
उनके लिए बनाये बम से
आम आदमी घायल हो जाते हैं..

 दुसरे समूह ने कहा
इन नेताओं को तो तड़प तड़प कर मरना चाहिए
ऐसे गए गुजरे लोगों को
बम से मारने में हम भी शरमाते हैं..

तीसरे आतंकी समूह ने कहा
मारा तो जिन्दा लोगों को जाता है
मरे हुए को कोई बम कहाँ मार पाता है..

चौथे समूह ने कहा
अगर कोई मरे तो क्या बदल जायेगा
एक भ्रष्ट जायेगा फिर दूसरा आएगा..

बुधवार, 7 सितंबर 2011

की तू कभी तो लौटेगा..

की तू कभी तो लौटेगा..

आँखें नम हैं 
शहर के रस्ते की तरफ
निगाह गड़ाए बैठा हूँ 
तू कभी तो लौटेगा..

हर रोज 
तेरे पुराने घर से 
होते हुए गुजरता हूँ
मन में आस जगाये बैठा हूँ
तू कभी तो लौटेगा..

ये सोच
बातें होगी फिर से
कई नए सवाल बनाये बैठा हूँ
कुछ सपने सजाये बैठा हूँ
की तू कभी तो लौटेगा..

लोग कहते हैं 
जाने वाले वापस नहीं आते 
न जाने क्यूँ फिर भी
दिल को समझाए बैठा हूँ
की तू कभी तो लौटेगा..

यूँ तो 
तेरी दी हुई चीजें
हाल के बाढ़ में बह गयी 
पर तेरी याद बचाए बैठा हूँ 
की तू कभी तो लौटेगा..


इस गाँव में 
अब रहता कोई नहीं
अकेला मैं यहाँ
सब कुछ ठुकराए बैठा हूँ
की तू कभी तो लौटेगा..

मंगलवार, 6 सितंबर 2011

तू है तो मानता हूँ खुदा, खुदा क्यूँ है..

तू है तो मानता हूँ खुदा, खुदा क्यूँ है..

किन शब्दों में बयां करूँ तुझे
किन पन्नों पे तेरी कीमती यादें रखूं 
किस आवाज में तेरी हँसी पिरोउं 
किन एहसासों में मुलाकातें लिखूं..

इक दुविधा में हूँ 
की तेरे चेहरे की चमक में सूरज फीका क्यूँ है
तेरी मस्ती में उलझा हवा का झोंका क्यूँ है
तुझे देखने ये चाँद तारे आये हैं, 
नहीं तो बादलों से देखो वो परेशां क्यूँ हैं..

हर शायर परेशां है तेरे हुस्न से 
एक तू है न जाने इस जहाँ में उतरा क्यूँ है
नज़रें उठती नहीं हैं तेरी,
मानता हूँ कई जिंदगी बचती है
पर हम तो वो कातिलाना जिंदगी ही चाहते है
नजरें उठा अपनी, कुछ और सोचता क्यूँ हैं..

तू तो खुदा की काबिलियत का आइना है..
यूँ तो खुदा को मानने वालों से मैं नहीं
पर तू है तो मानता हूँ खुदा, खुदा क्यूँ है..

शनिवार, 3 सितंबर 2011

कुछ पंक्तियाँ..

कुछ पंक्तियाँ..

"सोचता था कभी कि क्या करूँ मैं 
तुझे पास रखूं या खुद से दूर करूँ मैं

अब समझ आया की मेरे बस में तो कुछ भी नहीं ..."

"पलकें जो तब उठाई थी तुमने 
महफ़िल से गम सारा दूर हो गया..
                      आँखों की तरफ तेरे देखा भी जिसने
हर वो शख्स नशे में चूर हो गया.."

                       "आईने ने देखा जो खुद में तुमको
वो बोलने पे मजबूर हो गया..
                        जो रस्ते पे निकली तू एक दिन
हुस्न तेरा शहर में मशहूर हो गया.."

"तेरी हंसी में सुकूँ हैं, मस्ती है,  मजा है
पर बता दिया कर कि तेरे हसने की वजह क्या है.. "

"जो मोहल्ले से - बुजुर्गों का जनाजा निकला
मैं समझ गया तू शहर में वापस गयी है.."

 

"कल तेरे हसने की आवाजों से मोहल्ला गूंज रहा था
अब घायलों के लिए अस्पताल में जगह नहीं है.."

बुधवार, 24 अगस्त 2011

जिंदगी को अपना बनाते चलो..

जिंदगी को अपना बनाते चलो..

दिल की वो आग बुझाते चलो 
रूह को अपने समझाते चलो..

कहीं खो न जाये तेरी यादों में मन 
जिंदगी को रास्ता दिखाते चलो..

आशा के सुर सजाओ सब मे 
निराशा को दूर भगाते चलो..

दर्द तो हर दिल का फ़साना है आज कल 
इंसान हो दर्द में मुस्कराते चलो..

भूल के सन्नाटे बीती रातों के
राह में महफ़िल बनाते चलो..


अपने गम में किसी और को न उलझाओ
गम को बाहों में रखो, खुशियाँ लुटाते चलो..

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

पास आओ न एक बार ए जाना ..

पास आओ न एक बार ए जाना ..

यूँ तो तेरी यादों से हम दूर जा रहे हैं,
खुद को फिर भी कसमकस में पा रहे हैं,
कहाँ है आजादी तेरी यादों से हमें ,
तनहा हो रहे हैं खुद को तडपा रहे हैं ..

रोयें या हसें, कुछ समझ नहीं आता, 
आँखों की नमी को हंस कर दबा रहे हैं,
पास आओ न एक बार ए जाना ,
तेरी आस में बड़ी मुद्दत से जिए जा रहे हैं..

तेरी यादों में जिंदगी है या दर्द का साया ,
किसे फ़िक्र है हम तो यादों में तुम्हे लाये जा रहे हैं ,
कभी खुली आँखों से कभी बंद आँखों से,
सपने तो हम बड़े अरसे से सजाये जा रहे हैं..

हर रोज हम तुम्हे भुला रहे हैं
या प्यार तेरे लिए बढ़ाये जा रहे हैं..
हर रोज एक ही बात बदल बदल कर
खुद को समझाए जा रहे हैं..

ये सांसें कांपती हैं दिल में जाने के पहले ,
दिल को कुछ यूँ हम जलाये जा रहे हैं..
पास आओ न एक बार ए जाना ,
कब से तेरी आस में पलकें बिछाये जा रहे हैं..

शनिवार, 6 अगस्त 2011

जिंदगी मौत के गीत गाता है..

जिंदगी मौत के गीत गाता है.. 

तुझसे जो रिश्ते टूट गए
जिंदगी अब मौत के गीत गाता है
कभी पुराने सपने तोड़ता है 
कभी नए झूठे ताजमहल बनाता है..
कभी समय को पीछे ले जाता है
कभी दुःख के बांध को तोड़ता है
और गम में बह जाता है 
जिस चाँद से कभी बातें करता था
अब उसी से आँखें चुराता है
जिस हवाओं की खुशबू से खुश होता था
अब उन हवाओं से मन डर जाता है
रस्ते तो उलझ गए हैं बहुत 
जिधर जाता है जिंदगी फंस जाता है
बादलों की गहन बारिश में भीगकर भी 
कोई प्यासा तड़प जाता है
मुस्कराना तो जैसे पेशा बन गया है
दिल से कहाँ कोई खिलखिलाता है
तेरी नज़र में कोई फर्क नहीं पड़ता
पर दिल को समझो तो समझ आता है
जिंदगी जीता है झूठी जिंदगी
और मौत के गीत गाता है.
जंजीरों में बंधकर भी 
न जाने क्यूँ मुस्कराता है..

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

किसको क्या बतलाऊँ मैं ..

किसको क्या बतलाऊँ मैं ..

इन कागज के पन्नों पर कितना दर्द लिखूं
इस कलम को क्या क्या बताऊँ मैं
दिल में अरमा कई हैं, है ये प्यार से भरा,
लिख लिख कर कितना जताऊँ मैं..

इस चाँद से कितनी बातें करूँ
इन हवाओं को क्या क्या समझाऊँ मैं
खुद के टुकड़े टुकड़े हो रहे हैं
पर हर पल कितना आंसू बहाऊँ मैं..

कभी सोचूं कभी रोकूँ खुद को
कभी तुझको पास लाऊँ मैं
सपनों का क्या करूँ 
निद्रा को कैसे समझाऊं मैं..

यहाँ तो लोग कई हैं चारों तरफ  
रोने को कहाँ जाऊं मैं
तेरी यादों की तड़प में डूब गया है दिल
अब कितना मुस्कुराऊँ मैं..

किसको क्या बतलाऊँ मैं..

शनिवार, 23 जुलाई 2011

खुद को ही सजा देते हैं..


खुद को ही सजा देते हैं..

आँखों में नमी रखते हैं
सांसों को समझा देते हैं 
कोई मेरे लिए परेशां न हो
सोच हम मुस्करा देते हैं ..

हवा भी तड़प जाती है 
सांसों के जरिये दिल में आकर 
खुद में पल रहे गम को 
जो दिल में ही जला देते हैं ..

न राख बचती है
न धुआं उठता है 
न आह निकलती है 
न गिला होता है 
सब को खुद में ही दफना देते हैं
खुद को ही मीठी सजा देते हैं..


गुरुवार, 21 जुलाई 2011

तुझे मैं खुद में मिला लेता था..

तुझे मैं खुद में मिला लेता था..

आंसुओं को पलकों में छुपा लेता था
दर्द-ए-दिल यादों में दबा लेता था
जो पड़ते थे जख्म मुझमे तेरी यादों से
चुप रहता था, कुछ खून का कतरा बहा लेता था..

तनहा जीता था मैं महफ़िल में 
तेरे दर्द में खुद को जला लेता था
तेरे मोहल्ले से गुजरता था तुझे देखने को
खुद को चादर में छुपा लेता था..

सासों को रुकने की तमन्ना थी
सोने के लिए हर रोज दवा लेता था
वो बारिश ही था साथी मेरा
साथ उसके मैं अपने आंसू बहा लेता था..

मुहब्बत की आग आज भी जल रही मुझमे
कोशिश क़ी बुझाने की भी हमनें
हर बार जो आये हम सहारा लेकर
ये दिल है जो आग और बढ़ा लेता था..

मौत की जरूरत तो थी नहीं हमें
हर पल मौत सी ही सजा देता था..
तुझे भूलने की जितनी भी कोशिश करता  
तुझे और भी मैं खुद में ही मिला लेता था..

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

कभी यहाँ इंसान रहे होंगे...

कभी यहाँ इंसान रहे होंगे...

इन ऊँची इमारतों की जगह
कभी छोटे खुश मकान रहे होंगे,
इन कारखानों ने जो ले ली हैं जमीनें
इनसे न जाने कितने जुड़े अरमान रहे होंगे,
सामने से आती थी कभी बच्चों के हँसने की आवाजें 
अब तो रोने की आवाजें हैं या मौत की शांति
सोचता हूँ कभी तो लोग नादान रहे होंगे,
अब जिन रास्तों में होती हैं मौत की बातें 
कभी ये रस्ते सुनसान रहे होंगे,
इन रोज की ख़बरों में बहता है दर्द बेहिसाब
कभी तो इन ख़बरों में ख़ुशी के पैगाम रहे होंगे,
मरता है आदमी जो हर पल हर जगह यहाँ 
कभी मरे लोगों के लिए अलग शमशान रहे होंगे,  
सोचता हूँ  आज तो जी रहे हैं हम बदनाम जिंदगी 
हमसे पहले कभी यहाँ इंसान रहे होंगे....

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

लोग कहते है...

लोग कहते है...


लोग कहते है तुम क्या जानो मुहब्बत की सजा,
किसी ने पूछा ही नहीं हमने कभी मुहब्बत की है या नहीं .

लोग कहते हैं कभी आंसू भी बहाया है किसी प्रिय की खातिर
किसी ने सोचा ही नहीं रैन मेरे भी आंसू से लिखे पन्नों में जलते थे कभी.

लोग कहते हैं तुम्हे क्या पता चाहकर किसी को खोना क्या होता है
किसी ने देखा की नहीं मेरी आँखों में आती नमी.

लोग कहते हैं किसी की आवाज़ सुनने तक को तरस जाता है मन
किसी ने सुनी ही नहीं मुझमे तेरी गूंजती हर हंसी.

लोग कहते है तुम क्या जानो मुहब्बत क्या है
सही कहते हैं वो की मेरी मुहब्बत में न मौत है न जिंदगी...