शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

तू आती है कभी कभी ख्वाबों का जनाजा लिए..

तू आती है कभी कभी ख्वाबों का जनाजा लिए..

यादों में झुलसी रातों में
ख्वाबों का जनाजा लिए,
तू आती है कभी कभी
वफाई की सजा लिए,
निद्रा को चीरती तू
अचेतन मन में आती है  
फिर से ये फासला लिए,
दूर तुझ से
अब भी जलता हूँ मैं,
की आओ कभी 
मिलन का समां लिए,
हवाओं में घुली महक
अब भी साँसों को तडपाती है,
वो अंश तेरा 
अब भी जीता है मुझमे,
पर जीता हूँ मैं अब भी
कभी मिलन का हौसला लिए..
तू आती है कभी कभी ..

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

ऐसे जीवन में क्या है..ये तो बस आना जाना है...

ऐसे जीवन में क्या है..ये तो बस आना जाना है... 
कभी सोचता हूँ
ये जिंदगी क्या है,
ये कैसा यहाँ
आना जाना है,
जो चाहो 
हर वक़्त मिलता नहीं,
हर पल ही
खुद को समझाना है,
कोई खुश है
क्यूंकि वो खुशियाँ ढूंढता है,
हर पल लड़ना है,
हर मोड़ अंजाना है,
कोई रस्ते में पड़ा है,
किसी का जैसे जमाना है,
पैसों में तोल रही दुनिया सबको,
दौलत नहीं 
तो परायों का ये आशियाना है ,
इंसानियत कहाँ है,
ये कैसा जहाँ है,
ईश्वर ने किया क्या है,
लगता है जैसे बस 
जिन्दा रहने की लड़ाई है,
जैसा डार्विन ने कहा था..
जो हर पल लड़ता है
और जीतता है
उसका ये जहाँ है,
वो आँखों में खुशी,
दिल में प्यार,
मन में सम्मान,
आत्मा में शांति,
सोच में पवित्रता,
का जमाना कहाँ है,
अगर ये नहीं तो फिर
ऐसे जीवान में क्या है..
ये तो सिर्फ आना जाना है... 
 अपनी पीढ़ी को
इस दुनिया में लाना है
या इसे बेहतर बनाना है..
(Think ..)

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

वो तूफानी रात..


वो तूफानी रात..

बारिश तेज थी ,
घना अँधेरा था,
हवाओं में दहशत था,
बादलों ने घेरा था,
पत्तों की सरसराहट में
एक दुष्टता का अंदेशा था,
मैं एक कोने में पड़ा था,
सहमा था।

दूर में कोई कर्कश सी ध्वनि
दिल की धड़कन को बढाती थी,
जैसे कोई अदृश्य
इक कोने में खड़ा था,
झरोखों से आती हवा
पंखों से बातें कर रही थी,
पड़ोस के घर में
कोई बच्चा रो रहा था,
मैं माँ का चेहरा
मन में लिए बैठा था,
हर कुछ पल पे सोचता था,
क्यूँ मैं आज घर में अकेला था

बिजली की चमक में
आंखें चौंध सी गयी,
गर्जन ने कानों के जरिये
दिल में हरकत की,
बारिश की बूंदों में
वो शीतलता थी, सुकूँ,
माँ का इंतज़ार था,
मन सोचता कहाँ सवेरा था,
कि मैं डरा था सहमा था अकेला था...


शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

मेरे अश्क...

मेरे अश्क...

अश्कों की धारा कहती है,
तू अलग कर मुझको खुद से,
इसमें मेरी क्या गलती है ,
जो दूर गयी है वो तुझसे।

तेरे नैनों ने जो विदा किया
तेरे गालों पे पनाह की तलब होगी,
इस उलझी जलती दुनिया में
मैं कहाँ चैन सुख पाउँगा,
मैं इन लड़ते गिरते पवनों के संग
उड़कर फिर से खो जाऊंगा।
दुनिया में जो मुझको देखेगा
तेरी ही हँसी उड़ाएगा,
पुराने अश्कों की बात नहीं,
कोई इतनी करीबी से ना देखेगा,
ना सूखे अश्कों के निशानों पर जायेगा।

कभी दर्द और बढ आया था,
तब मैंने कुछ लहू बहाया था।

अश्कों ने फिर कहा मुझसे
अब मुझको विदा करो खुद से।
मैं और कहीं भी जाऊंगा
पर मुझमे वो ताकत कहाँ
जो ये दर्द महफूज रख पाउँगा।

तेरे दर्द में घुलकर अब
मैं भी लहू बन जाऊंगा..

ये लहू बहाना ठीक नहीं
तू मुझको क्यूँ तडपाता है
तेरी दुनिया को सोचूँ तो
मुझको भी रोना आता है..