तू आती है कभी कभी ख्वाबों का जनाजा लिए..
यादों में झुलसी रातों में
ख्वाबों का जनाजा लिए,
तू आती है कभी कभी
वफाई की सजा लिए,
निद्रा को चीरती तू
अचेतन मन में आती है
फिर से ये फासला लिए,
दूर तुझ से
अब भी जलता हूँ मैं,
की आओ कभी
मिलन का समां लिए,
हवाओं में घुली महक
अब भी साँसों को तडपाती है,
वो अंश तेरा
अब भी जीता है मुझमे,
पर जीता हूँ मैं अब भी
कभी मिलन का हौसला लिए..
तू आती है कभी कभी ..