शनिवार, 3 सितंबर 2011

कुछ पंक्तियाँ..

कुछ पंक्तियाँ..

"सोचता था कभी कि क्या करूँ मैं 
तुझे पास रखूं या खुद से दूर करूँ मैं

अब समझ आया की मेरे बस में तो कुछ भी नहीं ..."

"पलकें जो तब उठाई थी तुमने 
महफ़िल से गम सारा दूर हो गया..
                      आँखों की तरफ तेरे देखा भी जिसने
हर वो शख्स नशे में चूर हो गया.."

                       "आईने ने देखा जो खुद में तुमको
वो बोलने पे मजबूर हो गया..
                        जो रस्ते पे निकली तू एक दिन
हुस्न तेरा शहर में मशहूर हो गया.."

"तेरी हंसी में सुकूँ हैं, मस्ती है,  मजा है
पर बता दिया कर कि तेरे हसने की वजह क्या है.. "

"जो मोहल्ले से - बुजुर्गों का जनाजा निकला
मैं समझ गया तू शहर में वापस गयी है.."

 

"कल तेरे हसने की आवाजों से मोहल्ला गूंज रहा था
अब घायलों के लिए अस्पताल में जगह नहीं है.."

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