शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

ये कैसी उदासी की लहर चली है...

ये कैसी उदासी की लहर चली है...

कहीं बिजली गिरी है, कहीं सूखा पड़ा है,
कहीं फसल उजड़ी है, कहीं सब कुछ बहा है,
जहाँ सब निश्चिंत सो रहे है,
वहीँ किसी का मन डर में लिपटा रो रहा है,
कहीं तूफ़ान ने अपना खेल खेला,
और तन्हाई में अब उस गाँव की हर गली है,
ये कैसी उदासी की लहर चली है..


जहाँ सूरज के आने के ही साथ ख़ुशी आती थी,
वहां वीरानों में अब धरती पड़ी है,
जहाँ बच्चों के हंसी में फिजा थी झूमती,
वहां खुशियों के कत्ल की खबरें जड़ी हैं,
जहाँ हवाएं फूलों के संग खेलती थी,
वहां की अब मुरझाई हर कली है,
न जाने ये कैसी उदासी की लहर चली है...


कहीं किसी नन्हे के पास आंसू के बूंद भी नहीं पीने को,
जहाँ चाँद की शीतलता में भी दुनिया जल रही है,
जहाँ हर मोड़ पे एक हंसी की उम्मीद हुआ करती थी,
वहां हर मोड़ मेरी जिंदगी पर हँस रही है,
ये किस दिशा से आई कहानी, किस शहर से आई मुसीबत है,
कोई बताओ कहाँ पे ये मुसीबत पली है ,
ये कैसी उदासी की लहर चली है...


दिल है खामोश, आँखें नम है,
दुःख की बारिश में कोई सहारा देने को न बचा,
लगता कभी अब जिंदगी से मौत ही भली है,
बस उम्मीद है इस जहाँ से बाहर निकलने के लिए,
कहीं न कहीं एक लापता उलझी गली है,
न जाने ये कैसी उदासी की लहर चली है..

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

खौफ है कि दिल के दर पे दस्तक न हो…

खौफ है कि दिल के दर पे दस्तक न हो…

दिल के दर पे जो दस्तक गयी, हमनें सहमी साँसों से कड़ी और कस दी,

खौफ था कहीं फिर से वो शरारत न हो, खौफ था कि फिर से मुहब्बत न हो.


दर पे दस्तक बनी रही, दर ओ दीवार अब सहमा था

कहीं वो ख़ुशी के प्याले में गम की आफत न हो, की कहीं फिर से वो अनजानी सी हालत न हो,

दुआओं का दौर कहीं तेज हो रहा था,

कहीं फैसले के लिए फिर तेरी अदालत न हो, कहीं फिर से मेरे जिंदगी में आकिबत हो।


कहीं कोई प्यारा न दिखे, कभी कोई मेरी अमानत न हो

यकीं है पर फिर भी खौफ है, कोई तुम सा खुबसूरत न हो।


मुसाफिरों का न पता कैसा काफिला है, कहीं फिर से मेरे खिलाफ बगावत न हो

कोई प्यार बाँटनें भी आया हो तो कह दूँ, चाहता हूँ दिल में प्यार की बरक्कत न हो।


बहुत जी लिया गम ए जिंदगी में, की फिर से उस गम की हुकूमत न हो

कहीं फिर से उसकी फैलाई दहसत न हो, फिर से उसके जुल्मों की मेरे घर कोई दावत न हो।


हर दस्तक के साथ यही दुआ है, मुझे कहीं छुपा ले जहाँ से कभी जमानत न हो,

मैं तो कड़ी खोल दूँ मगर, खौफ है कहीं इसकी भी फितरत फुरक़त न हो।


दर पे फिर से कोई हरकत न हो, हम तनहा ही खुश है अब लौट जाओ,

खौफ की कहीं मुझे खुद से नफरत न, कहीं खुद से रूठने कि नौबत न हो।


तेरी इनायत होगी खुदा, कोई दस्तक की जरूरत नहीं,

कभी पास आये और फिर, कहीं इसे भी मेरे लिए फुर्सत न हो।

तोड़ न दे मुझे इतना,

की कहीं टूटने पे फिर से कोई हैरत न हो, की फिर से उठने की हिम्मत न हो।


मुझे फिर से कोई खेल नहीं खेलना, खुदा मुझसे खेलने की किसी को इजाजत न हो

हर गम में जी लिया मैं, अब कुछ कर, की किसी को दर पे आने कि जुररत न हो।


किसी के साथ मुझे सैर पे भी नहीं जाना, खौफ की कहीं लौटने के लिए बची मोहलत न हो

जिस कोने में मैं सहमा था कहीं, उस कोने में पलती मुसीबत न हो,

कहीं राहत के लिए किसी की रहमत न हो, वो झूठी शान ओ सौकत न हो।


हर रोज़नों को बंद किया मैंने, की तेरी यादों के संग कोई अन्दर न आये

जिनसे मैं भागता हूँ, कहीं वो फिर हकीकत न हो।


मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

कभी मेरे इश्क की तुझे खबर मिले...

कभी मेरे इश्क की तुझे खबर मिले...


ख्वाबों में बसी है तू मेरे,

छुप छुप कर देखा करते हैं ,

कभी तू देख मुस्कुराएगी,

ऐसा हम सोचा करते हैं,

आँखें सोचे कभी नज़र मिले,

चाहूँ मेरे इश्क की तुझे कभी खबर मिले।


कहने से ये हम डरते हैं,

चंदा से बातें करते हैं,

उन चंचल पवनों की लहरों में ,

तुझको हम छेड़ा करते हैं,

मन तरसे तुझ सा हमसफ़र मिले,

मेरे इश्क की तुझे खबर मिले।


भाव भरे चंचल मन से,

तेरे धुन पे गया करते हैं,

तेरे पीछे छुप छुप कर हम,

तेरे घर तक जाया करते हैं।


जुल्फें जो चूमे हवाओं को,

जो तेरे गालो को छुकर आती हैं,

तेरे बारे में सब कुछ हम,

उन लहरों से पूछा करते हैं।


तुझको यादों में लाकर हम,

पागल हो जाया करते हैं,

कभी खुद में खोया करते हैं,

कभी खुद से बातें करते हैं।


घायल करती आँखें तेरी,

जैसे हों उनमे जहर मिले,

चाहूँ मैं तो बस इतना ही,

कभी मेरे इश्क की तुझे खबर मिले.

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

कैसे भूलूँ तुझे..



कैसे भूलूँ तुझे..


दिल पे चोट गहरा है,

धड़कन सहमा सा कह रहा है,

कैसे भूलूँ तुझे,

कभी खुद को तोड़ के तुझे खुद से जाने दूंगा,

भूलूँगा जब खुद को छोड़ के खुद को जाने दूंगा।



हर खून के कतरे में बसी तू,

तेरे बिना कोई वक़्त कहाँ है,

कैसे भूलूं तुझे,

कभी उस खून के कतरे को जो तुझसे जुड़ा है जाने दूंगा,

भूलूँगा तुझे जब खून का हर कतरा खुद से बह जाने दूंगा।



मेरी यादों में तेरा आशना है,

तेरे उस आसने में मेरी यादों का जहाँ है,

कैसे भूलूँ तुझे,

कभी कुछ हिस्सा मन से मिट जाने दूंगा,

भूलूँगा तुझे जब अपनी याद्दास्त मिटाने दूंगा।



मेरे हर बात की शुरुआत हो तुम,

जैसे मेरी आवाज़ हो तुम,

कैसे भूलूँ तुझे,

कभी कभी चुप रहकर तुझे पास न आने दूंगा,

भूलूँगा तुझे जब अपनी जुबां कट जाने दूंगा।



मेरे धड़कन में बसी हो तुम,

तू ही तो मेरी जां है,

कैसे भूलूं तुझे,

कभी धडकनें धीमी करके तेरे एहसास को न आने दूंगा,

भूलूँगा तुझे जब धड़कनों को रुक जाने दूंगा।



हर सांस की जिंदगी हो तुम,

तेरे बिना जीवन कहाँ है,

कैसे भूलूं तुझे,

कभी कुछ सासों को अन्दर न आने दूंगा,

भूलूँगा तुझे जब साँसों को जिंदगी से जाने दूंगा।



कैसे भूलूं तुझे,

बस कुछ छोटी कोशिशें कर सकता हूँ,

पर भूल के भी खुद से तुझको कैसे भुलाने दूंगा।

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

वो वक़्त अब भी जवां है...

वो वक़्त अब भी जवां है...

वो
मस्त हवा, फिक्र - मंद जिंदगानी,

वो मस्त मौसम, वो बारिश का पानी,

वो साथ तेरा हाँथों में हाँथ लिए,

वो मस्त आवारगी,मदमस्त जवानी।


वो दीदार तेरा, तेरी वो बातें,

वो दिन, साथ बीती वो रातें,

वो प्यार भरी नज़रें,

वो बिछड़ना और वो मुलाकातें।


वो तेरा मेरे सर को सहलाना,

वो तेरा हँसाना और रुलाना,

वो तेरा कभी रूठ जाना,

वो मेरा तुझको प्यार से मनाना।


वो तेरा गुस्सा, तेरी बचकाना हरकत,

वो कभी तेरी शान सौकत,

वो शर्मना वो सजना संवरना,

वो तेरी नवरस नजाकत।


वो तेरा मुझको चूमना,

वो तेरा मस्ती में झूमना,

वो कभी लहराना, कभी शांत,

वो तेरा हवाओं के संग घूमना।


वो तेरे लम्स, वो तेरा एहसास,

वो तेरे मुहब्बत की प्यास,

वो कभी तेरा मुझसे छिप जाना,

वो कभी तेरी तलाश।


वो वक़्त मुझे अब जिंदगी देता है,

वो वक़्त अब कहाँ है,

वक़्त कितना भी गुजरा हो,

तू साथ अब हो हो,
वो वक़्त अब भी जवां है।

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

..वो जमाना न रहा

..वो जमाना रहा


वो राज़ ओ नियाज़ , वो नाता न रहा,

वोह मुहब्बत का गुलिस्तां न रहा,

वो आवारगी, वो दीवानगी,

उस जूनून का अब पता न रहा.


अब तो रेगिस्तां में गुलिस्तां की जुस्तजू है,

अब वो मस्त समां न रहा,

तेरी खोज में अब भटक चुके है हम,

वो मस्त खिलखिलाता जहाँ न रहा.


वक़्त गुजर गए हैं बहुत,

अब तो मन उतना जवां न रहा,

अब तो सब तनहा है कहीं,

अब वो कारवां न रहा.


यादें तो पहले भी सताती थी,

पर कुछ आशाओं के संग जीता था मैं,

अब तो बस मरने की गुजारिश है,

जख्मों के लिए अब वो दवा न रहा.


अब टूट चूका हूँ मैं,

देख मेरी तरफ कभी,

तेरी जुल्मों का असर है ,

कि वो परवाना,वो परवांना न रहा,

जाने दो किसे क्या दोष दूँ मैं,

अब मजनुओं का जमाना न रहा.