रविवार, 27 मार्च 2011

न जाने मैं कहाँ था...

न जाने मैं कहाँ था...
 
बादलों के आँचल में 
इक शाम बड़ी सुहानी थी,
इक सुकून की छुअन थी,
हवा भी मस्तानी थी,
कब रंग गया रंग में
मस्ती में खोया था,
न खबर थी,
न चिंता थी खबर होने की.
निकल गया धुन में 
एक प्यारी सी तितली के संग,
झूमता डोलता बहता रहा,
मिटटी में सने पावों से
गिरता संभलता चलता रहा,
खिलखिलाती हंसी थी संग
खुला आसमाँ था,
धरती में महक में
अजब सा नशा घुला था,
हर शय खुश सा लगा, 
ये कोई और जहाँ था,
पंछियों की चहचहाट में
हल्की बूंदों से सजता समाँ था,
पर ये क्या
अचानक तितली उड़ चली दूर
मुझे खुद का न पता था,
एक छोटी सी, नन्ही सी जान लिए
न जाने मैं अब कहाँ था..
( Sometimes in life, some paths seem so attractive that they make you forget that you might be lost if you walk along them)
   

बुधवार, 23 मार्च 2011

तुम्हे क्या पता ..

तुम्हे  क्या  पता ..

 
तुम तो मुझे शालीन समझती थी,
सोचती थी मैं किसी के पीछे न जाता था,
तुम्हे क्या पता तुम्हे देखने,
लैब की खिड़की पे छुप छुप के मैं रोज आता था,
मेरी सूरत को सीधा देख,
मुझे मासूम समझना तो तेरी मासूमियत थी,
तुम्हे क्या पता
 तिरछी नज़रों से मैं क्या क्या कर जाता था..

न सोचो की मुझे पता नहीं,
कि तू भी मुझे देखा करती थी,
जब भी  मैं तुम्हे देखने की कोशिश करता,
तब तेरी आँख मेरे से जो लडती थी,
तुझे आज भी लगता है,
  तेरा मेरा पसंदीदा रंग एक होना इत्तफाक है,
तुम्हे क्या पता,
 तेरी पसंद जानने के पहले मेरी पसंद कुछ और हुआ करती थी.

तुझसे बातें करना, तुझे  सुनना,
तुझसे सवाल पूछना तो मेरी आदत सी थी,
तुम्हारा लैब के बाद भी लैब नोट्स समझाना,
लगता था जैसे तुझे बहुत फुर्सत सी थी,
तुझे आज भी लगता है,
 मुझे पढाई और लैब में दिक्कत हुआ करती थी,
तुम्हे क्या पता वो वक़्त आता था,
 क्योंकि जाँ मेरी उस वक़्त की दुआ करती थी.

तेरे पैरों के पास जो कभी पेन का ढक्कन गिरता,
और फिर जो तू उठा के मुझे देती थी,
मेरे हाँथ उठाने से ढक्कन लेने तक की हर सांस,
मेरे दिल के जख्मों में दवा देती थी,
तुझे आज भी लगता है,
ढक्कन गिरना बस गलती हुआ करती थी,
तुम्हे क्या पता,
वो ढक्कन ढीली मेरे ही हांथों हुआ करती थी.

तुझे क्लास में एक दिन रोता देख,
मेरे आँखों में आंसू से लगा तुझे की फ़ाराख-दिल हूँ मैं,
तेरी हर ख़ुशी, हर बात पे हँसता देख,
तुझे लगा की हंसमुख हूँ मैं,
तुझे आज भी लगता है,
तेरे प्रति झुकाव दिखाना मेरी शरारत हुआ करती थी,
तुम्हे क्या पता,
हर आंसू, हर ख़ुशी के पीछे मेरी मुहब्बत हुआ करती थी .

बुधवार, 9 मार्च 2011

इंतज़ार है अब भी ..

इंतज़ार  है अब भी ..
 
कभी जिंदगी पे हंसा मैं,
जिंदगी कभी मुझपे हंसी,
कितने हालतों से निकली,
कितने मोड़ों पे फंसी,
हर वक़्त तेरा चेहरा
दिल में लिए बढ़ता रहा,
करीब था मंजिल के 
तब कोहरा घना था,
दूर पे एक छवी थी,
धुंदली सी,
आँखों से ओझल होती
जिंदगी सी,
हवाएं शांत
सही वक़्त के इंतज़ार में,
वो घडी बेचैन थी,
वक़्त थम सा गया,
वो पल 
मुझमे मरहम सा गया,
आँखें नम थी मेरी, 
ख़ुशी का ठिकाना न रहा,
तू जीत गया
हवाओं ने मुझसे कहा,
हम धीमे से पास गए उनके,
हर पल बड़ा अजीब था,
आवाज़ लगाई उन्हें,
पर कोई जवाब न मिला,
और पास गया, मैं जब करीब था
धीमे से कंधे पे हाँथ रखा,
 वो मुड रही थी ,
धड़कन में कम्पन थी,
न जाने क्यूँ
सांसों में एक सरगम थी,
पर ये क्या
वो तो कोई और था वहां,
किसी और के इंतज़ार में,
मैं टूट रहा था,
हर सपना बिखरा सा लगा,
आँखें फिर से नम थी,
मैं खुद से जुदा सा लगा,
आसमान से पूछता मैं,
जवाब दे
मंजिल बदली है,
या वो आई ही नहीं है,
मेरी हालत देख उसने कहा
कोई अभी लौटा है,
मैंने पुछा
उसके जाने की दिशा क्या है,
फिर से एक आशा लिए 
मैं जी जान से भागा,
शायद कहीं वो मिल जाये,
फिर किसी जगह,
दूर में फिर से एक छवि थी,
वही एहसास फिर से 
वही जूनून आया,
मैं पास गया
और आवाज़ लगाया,
वो मुड़ी
पर वो मेरी जाँ नहीं थी,
पर उसने संदेशा सुनाया 
उसने कहा
तेरी जाँ का अब कहीं और ठिकाना है
तू लौट जा, तूने देर कर दी
अब उसे किसी और के साथ जाना है
बस मैं थोड़े ही देर से था,
क्या थोडा और इंतज़ार न हुआ,
इतना लड़ा मैं सबसे
सब बेकार न हुआ,
ढूढता हूँ उसे आज भी,
इंतज़ार है उसका,
क्या करूँ मैं
फिर किसी और से प्यार न हुआ..
:(