शनिवार, 19 जून 2021

जो महफूज़ है, वो ही मशहूर है..


 बुलंद घेरों से घिरा,

 वो घर आपका ,

मेहफ़ूज़ हैं दुनिया से, 

ये सोचते हैं क्या,

चौड़ी दीवारों के अंदर,

 जो अनबन हुआ ,

दरारों की निगाहों से

 देखता है कोई। 


बाहर जो गए,

 मुखौटा लिए हुए,

सोचा की कोई

कुछ जानता नहीं,

दरारों ने निगाहों से

देखा जो भी था,

बनते हुए किस्सों में,

अब वो मशहूर है। 


यकीं है कि  राज,

अपनों में हैं दबे,

कान दीवारों के भी

रहते हैं खड़े,

बाहर आये हो

मुखौटा लिए हुए,

किस्सों में दिख रहा

चेहरा जनाब का। 


दूसरे शहर में

सोचा मेहफ़ूज़ हैं ,

अपनों के साथ हैं

बड़े आराम से,

जो कुछ हुआ,

कोई देखा न सुना,

पर फैले हैं किस्से

अपनों के रास्ते। 


वो जो कमरा है,

हिफाज़त में पहरेदारों की,

जिसकी चाबी नहीं ,

जो खुला भी नहीं,

कितनी जायदाद है,

उन्हें पता भी नहीं,

चर्चे हैं शहर में,

उसके विस्तार से,

हर इक बात हुई है,

यहाँ पहरेदारो से। 


लगता है उन्हें,

कि वो मेहफ़ूज़ हैं,

दरारों की निगाहों से,

दीवारों के कान से,

दुनिया बड़ी छोटी है जनाब,

जो महफूज़ है आपके ख्याल में ,

वो ही मशहूर है यहाँ बाजार में। 



सवालों से भी मकाँ जलते हैं यहाँ ..

राज थे कई उस इक मकाँ में ,
न जाने कितने निगहबाँ थे वहीँ ,
बाहर निकलने के थे रास्ते कई,
दाखिल होने का कोई रास्ता नहीं,
जो बात थी दबी ,दबकर ही रह गयी। 

फिर एक दिन कहीं से उठा इक सवाल ,
जवाबों को ढूंढने की कवायद शुरू हुई ,
मकाँ की तरफ वो देखते थे तो सही ,
पर दाखिल होने का कोई रास्ता नहीं। 

जवाबों को ढूंढने में उठ गए कई सवाल ,
सवालों ने फिर एक हंगामा खड़ा किया ,
वो दाखिले का रास्ता दिखा था मगर ,
एक मासूम आग ने सबको डरा दिया ,
वो आग बुझाने को दमकल बुलाया था ,
मालूम पड़ा इक आग ने उसको जला दिया,
लपटें वो आग की धू  धू कर उठी,
मासूम आग ने सब कुछ मिटा दिया,
जो बात थी दबी दबकर ही रह गयी। 

मेला बड़ा लगा , तफ्तीश भी चली ,
निगहबानों के मुखौटों के कई रंग भी दिखे,
माहौल तो ,उस आग से, ज्यादा गरम हुआ ,
पर मासूम आग को मासूम ही  कहा ,
तफ्तीश भी जली उस आग की तरह ,
धू  धू कर जली जितना वो जल सकी,
मेला खड़ा किया , हंगामा सा हुआ ,
तफ्तीश भी बुझी उस आग की तरह ,
जो बात थी दबी , दबकर ही रह गयी। 

सपने कई जले सवालों की आग में ,
जवाबो को तलाश है ,किसी और मकाँ की ,
जो सवालों से न जले , फिर मासूम आग में।