मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

आदमी इतना, घबराता क्यूँ है..

आदमी इतना, घबराता क्यूँ है..


आदमी इतना घबराता क्यूँ है
फल की इच्छा करता है
फिर कर्म करना भूल जाता क्यूँ है..

मेहनत करता नहीं जितनी
उससे ज्यादा सपने सजाता क्यूँ है
कितनी रोशन है जिंदगी ये
फिर इसे बोझ बनाता क्यूँ है..

आदमी इतना, घबराता क्यूँ है..

कुछ वक़्त तो लड़ने के होते हैं
खुदा से संघर्ष मुक्त जिंदगी मनाता क्यूँ है
बिना घिसे तो हीरा भी नहीं चमकता
फिर घिसने से खुद को भगाता क्यूँ है..

हर राह मन की मिले तो जिंदगी क्या है
पथरीले राहों में डगमता क्यूँ है
गिरना तो उठने के लिए होता है
फिर गिरकर आंसू बहता क्यूँ है..

आदमी इतना, घबराता क्यूँ है..

दूसरों को देख खुद को छोटा समझता है कभी
कभी गलत राहों में जाता क्यूँ है
थोडा वक़्त लगता है पर खुश होती है जिंदगी
फिर अपना धीरज खो जाता  क्यूँ है..

कोई जादू की छड़ी तो होती नहीं
सब तो इस जहाँ में एक से आते हैं
फिर कोई मुश्किलों के पर्वत चढ़ जाता है
कोई गिरने से डर जाता क्यूँ है
गिरकर फिर चढ़ने की हिम्मत रखे 
देखने वालों पे जाता क्यूँ है..
किसी और की बात पे आता क्यूँ है..

आदमी छोटी सी जिंदगी में 
इतना घबराता क्यूँ है..
जिंदगी पाने की खाहिश में
जिंदगी जीना भूल जाता क्यूँ है..

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