शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

कुछ पंक्तियाँ..


कुछ पंक्तियाँ..


"खुशियों की कब्र में गम को रखा हूँ मैं
खुद में रोज नया शक्श देखता हूँ मैं..

भूलता हूँ, ढूंढता हूँ, सोचता हूँ हर पल
की किस 'अमन' का आइना हूँ मैं.."


सपनों में हम मिलते रहे
आँखों ही आँखों में
वो न जाने क्या कह गए
न कुछ उन्होंने बोला,
न हमनें कुछ पूछा
और कुछ राज, राज रह गए ..

"हम तो अपनी मौत का सामान लेने गए थे बाजार
लोगों ने कहा आपकी गली से गुजरने को इक बार.."

"दिल के दर पे वो ताला लगाये बैठा है,
शायद भूल गया है वो की यहाँ 
ताले बेचने वालों के घर भी लुटा करते हैं.."

"बेबस देखता रहा मैं खुद का बर्बाद होना
पर तुझको भुलाना मुझे मंजूर न था.."

"अपने दिल के पिंजरे में बंद कर 
कहती है मुझे तुने आजाद कर दिया.."

"यकीं है कोई अब भी है मुझमे बसा 
जो हर रोज सपने चोरी होते हैं मेरे मुझसे.."

वो कहता है "जाने वाले वापस नहीं आते"
जो कोशिश की है तुझे भुलाने की, 
मैं कहता हूँ
"कायदे से आने वाले वापस नहीं जाते"..

"मैं बेदर्द होकर हँसता रहा
बेजुबान गम कुछ कह न सका..
इस ढोंग ने
ख़ुशी का नकाब दिया कुछ ऐसा
की सच, सच रह न सका.."

"ना रो तू की इन आंसुओं का क्या होगा
तड़पेगा वो जो तुझसे जुदा होगा .."

"जो तेरी याद पास लाए 
हम कवि बन गए,
जो कोशिश की कि तुझको भूलाए 
हर लफ्ज़ में लहू आये
और हम कवि बन गए..

जाना है मुझे तुझसे दूर कहीं
वरना घर वाले कल बोलेंगे
IAS  बनने भेजा था 
और जनाब कवि बन गए.."


"हमसे शराब से भरे पैमाने नहीं बिकते 
वो होंठ लगा के पैमाने पे 'जहर' बेच देता है.."

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