शनिवार, 23 जुलाई 2011

खुद को ही सजा देते हैं..


खुद को ही सजा देते हैं..

आँखों में नमी रखते हैं
सांसों को समझा देते हैं 
कोई मेरे लिए परेशां न हो
सोच हम मुस्करा देते हैं ..

हवा भी तड़प जाती है 
सांसों के जरिये दिल में आकर 
खुद में पल रहे गम को 
जो दिल में ही जला देते हैं ..

न राख बचती है
न धुआं उठता है 
न आह निकलती है 
न गिला होता है 
सब को खुद में ही दफना देते हैं
खुद को ही मीठी सजा देते हैं..


2 टिप्‍पणियां:

  1. न राख बचती है
    न धुआं उठता है
    न आह निकलती है
    न गिला होता है
    सब को खुद में ही दफना देते हैं
    खुद को ही मीठी सजा देते हैं..

    bahut khoob sir

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