मोहब्बत में तुम और क्या चाहते हो..
मन के मंदिर में तुझको बिठाया
पूजा किया मैंने, की मैंने इबादत
अब तुम कैसी आराधना चाहते हो..
वफाई करूँ तो समझे नहीं तू
मेरी वफाई से कैसी वफ़ा चाहते हो..
वो दिन भूलकर जो बिताये थे हमनें
क्यूँ अब तुम ये फासला चाहते हो..
जिन पलों में जवां हुई मुहब्बत हमारी
क्यूँ झूठ की परतों में दबाना चाहते हो..
जो सदियों से सपनों की कश्ती सजी है
क्यूँ किनारे पे डुबाना चाहते हो..
मुझे यूँ सन्नाटे में अकेला न छोड़ो
क्यूँ इक बेगुनाह को सजा चाहते हो..
तेरे प्यार में मैंने सब कुछ लुटाया
मोहब्बत में तुम और क्या चाहते हो..
जिंदगी तो दे दी, क्या अब जाँ चाहते हो
बता मौत मेरी किस तरह चाहते हो..
darde-mohabbat ki sundar abhivyakti
जवाब देंहटाएंDhanyawad somali :)
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