रविवार, 25 दिसंबर 2011

छोड़ दी हमनें वो राहें ..

छोड़ दी हमनें वो राहें ..

टुकड़े टुकड़े दिन बीते
रातें रोई मेरी तड़प कर
फैज की बात सोचे कौन मुहब्बत में
आँखों पे आंसू पर लब पे दुआ है..

नज़रें, अदाएं कातिल है तेरी
मरते देखा है कईयों को हमनें
तू पत्थर दिल है पर,
कभी दिखा नहीं  
की जिंदगी से तेरा क्या वास्ता है..

खाबों ने पाँव रखे तेरी दुनिया में
फिसले और टूट गए
हमने चुनने की कोशिश नहीं की
कहा अब इन खाबों में रखा क्या है..

जलती बुझती आँखों में
जो जिंदगी बीती है मेरी
देखने की कोशिश है अब
की इन बेचैनियों के पार क्या है..

गम ए दिल को समझाया हमें
मानता है वो अब, की तू बेवफा है..
खुश रह तू दूर मुझसे रहकर अकेला 
छोड़ दी हमनें वो राहें जहाँ तेरी दुनिया है..


2 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ी नाउम्मीदी झलक रही हैं , और भी ग़म है ज़माने में ........
    (कृपया वर्ड वैरिफिकेसन हटा दीजिये.)

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  2. :) dhanyawad sunil ji comment ke liye :) (word verification kaise hatta hai, main koshish karta hun) :)

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