शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

न जाने क्यूँ..

न जाने क्यूँ..

जो खफा रहूँ तुझसे,
कोशिश करूँ कोसने की 
पर मन से हर वक़्त
तेरे लिए दुआ जा निकलती  है..

बस एक झलक तेरी यादों की
लेने आँखें बंद करता हूँ
यादें सपनों के संग
न जाने कहाँ कहाँ जा निकलती है..

बातें तो तेरी करने से
खुद को रोकता हूँ पर
लब को बहकाए मन और
तेरी ही बातें आ निकलती है..

तेरे जाने के पल याद आते है कभी
तो खुद को संभालता हूँ
पर हर बार दिल से हारता हूँ,
हर बार आह आ निकलती है..

छुपा रखा हूँ गम को 
की किसी को खबर न लगे 
न जाने फिर ये बात
कैसे बड़ी दूर जा निकलती है..

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