शनिवार, 6 अगस्त 2011

जिंदगी मौत के गीत गाता है..

जिंदगी मौत के गीत गाता है.. 

तुझसे जो रिश्ते टूट गए
जिंदगी अब मौत के गीत गाता है
कभी पुराने सपने तोड़ता है 
कभी नए झूठे ताजमहल बनाता है..
कभी समय को पीछे ले जाता है
कभी दुःख के बांध को तोड़ता है
और गम में बह जाता है 
जिस चाँद से कभी बातें करता था
अब उसी से आँखें चुराता है
जिस हवाओं की खुशबू से खुश होता था
अब उन हवाओं से मन डर जाता है
रस्ते तो उलझ गए हैं बहुत 
जिधर जाता है जिंदगी फंस जाता है
बादलों की गहन बारिश में भीगकर भी 
कोई प्यासा तड़प जाता है
मुस्कराना तो जैसे पेशा बन गया है
दिल से कहाँ कोई खिलखिलाता है
तेरी नज़र में कोई फर्क नहीं पड़ता
पर दिल को समझो तो समझ आता है
जिंदगी जीता है झूठी जिंदगी
और मौत के गीत गाता है.
जंजीरों में बंधकर भी 
न जाने क्यूँ मुस्कराता है..

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