मंगलवार, 19 जुलाई 2011

कभी यहाँ इंसान रहे होंगे...

कभी यहाँ इंसान रहे होंगे...

इन ऊँची इमारतों की जगह
कभी छोटे खुश मकान रहे होंगे,
इन कारखानों ने जो ले ली हैं जमीनें
इनसे न जाने कितने जुड़े अरमान रहे होंगे,
सामने से आती थी कभी बच्चों के हँसने की आवाजें 
अब तो रोने की आवाजें हैं या मौत की शांति
सोचता हूँ कभी तो लोग नादान रहे होंगे,
अब जिन रास्तों में होती हैं मौत की बातें 
कभी ये रस्ते सुनसान रहे होंगे,
इन रोज की ख़बरों में बहता है दर्द बेहिसाब
कभी तो इन ख़बरों में ख़ुशी के पैगाम रहे होंगे,
मरता है आदमी जो हर पल हर जगह यहाँ 
कभी मरे लोगों के लिए अलग शमशान रहे होंगे,  
सोचता हूँ  आज तो जी रहे हैं हम बदनाम जिंदगी 
हमसे पहले कभी यहाँ इंसान रहे होंगे....

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