शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

वो तूफानी रात..


वो तूफानी रात..

बारिश तेज थी ,
घना अँधेरा था,
हवाओं में दहशत था,
बादलों ने घेरा था,
पत्तों की सरसराहट में
एक दुष्टता का अंदेशा था,
मैं एक कोने में पड़ा था,
सहमा था।

दूर में कोई कर्कश सी ध्वनि
दिल की धड़कन को बढाती थी,
जैसे कोई अदृश्य
इक कोने में खड़ा था,
झरोखों से आती हवा
पंखों से बातें कर रही थी,
पड़ोस के घर में
कोई बच्चा रो रहा था,
मैं माँ का चेहरा
मन में लिए बैठा था,
हर कुछ पल पे सोचता था,
क्यूँ मैं आज घर में अकेला था

बिजली की चमक में
आंखें चौंध सी गयी,
गर्जन ने कानों के जरिये
दिल में हरकत की,
बारिश की बूंदों में
वो शीतलता थी, सुकूँ,
माँ का इंतज़ार था,
मन सोचता कहाँ सवेरा था,
कि मैं डरा था सहमा था अकेला था...


19 टिप्‍पणियां:

  1. Best Wishes...
    Reagards
    Chandar Meher
    lifemazedar.blogspot.com
    kvkrewa.blogspot.com
    angrezikiclass.blogspot.com

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  2. इतनी ख़ूबसूरती से बयां किया है भावनाओं कों की आँखों के आगे चित्र सा खिंच गया।

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  3. dhanyawad chandan, divya ji n pankh...aapke comments mere liye kafi protsahan dene wale hain...dhanyawad..

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  4. "कोई बच्चा रो रहा था,
    मैं माँ का चेहरा
    मन में लिए बैठा था"

    bahut sundar rachna
    aapka lekhan pasand aaya
    likhte rahiye

    aabhaar

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  5. Dhanyawad creative manch and anand
    @anand : main sanskrit samajh sakta hun par likh nahi sakta..:)

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  6. बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|

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  8. इस बात में कोई भी दो राय नहीं है कि लिखना बहुत ही अच्छी आदत है, इसलिये ब्लॉग पर लिखना सराहनीय कार्य है| इससे हम अपने विचारों को हर एक की पहुँच के लिये प्रस्तुत कर देते हैं| विचारों का सही महत्व तब ही है, जबकि वे किसी भी रूप में समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच पहुँच सकें| इस कार्य में योगदान करने के लिये मेरी ओर से आभार और साधुवाद स्वीकार करें|

    अनेक दिनों की व्यस्ततम जीवनचर्या के चलते आपके ब्लॉग नहीं देख सका| आज फुर्सत मिली है, तब जबकि 14 फरवरी, 2011 की तारीख बदलने वाली है| आज के दिन विशेषकर युवा लोग ‘‘वैलेण्टाइन-डे’’ मनाकर ‘प्यार’ जैसी पवित्र अनुभूति को प्रकट करने का साहस जुटाते हैं और अपने प्रेमी/प्रेमिका को प्यार भरा उपहार देते हैं| आप सबके लिये दो लाइनें मेरी ओर से, पढिये और आनन्द लीजिये -

    वैलेण्टाइन-डे पर होश खो बैठा मैं तुझको देखकर!
    बता क्या दूँ तौफा तुझे, अच्छा नहीं लगता कुछ तुझे देखकर!!

    शुभाकॉंक्षी|
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    (देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
    फोन : 0141-2222225(सायं सात से आठ बजे के बीच)
    मोबाइल : 098285-02666

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  9. blog padhne, sarahne aur in sab baaton ke liye bahut bahut dhanyawad purusottam ji..
    aapki likhi lines hamein achi lagi..:)
    aaplogon k protsahan se hi maine blog me likha ab suru kiya hai..asha hai aap hindi ko aur hamari bhawnaon ko hamesha sahi raah denge..
    dhanyawad..

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  10. @Amanji Bahut Uttam. Hamari aapse prarthana hai ki aap isi tarah Hindi ki sewa karte rahiye.

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  11. aman bhai alfaaz nahi hai aapki likhawat ki taarif ke liye ... but carry on :)

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  12. सुन्दर भावाभिव्यक्ति...

    हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । कृपया जहाँ भी आप ब्लाग फालो करें वहाँ एक टिप्पणी अवश्य छोडें जिससे दूसरों को आप तक पहुँच पाना आसान रहे । धन्यवाद सहित...
    http://najariya.blogspot.com/

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  13. हाँ माँ के बिना तो डर ही लगता है..... प्यारी कविता लिखी आपने.....

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