शनिवार, 23 अप्रैल 2011

वो परी थी..

वो परी थी..  
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 मिला था किसी से मैं
जिसके झूमने की अदा देखती थी
फिजायें रूककर,
जिसकी खूबसूरती निहारता था
चंदा जल जल कर,
गहराई को समझने में उसके 
उलझा हर सागर,
जिसकी हँसी में खुश था
शामिल हर शय, 
जिसके गाने से चहचहाते थे
 पंछी सारे,
जिसके आँचल लहराने से 
सुकून बिखरता था, 
गम का साया भी 
पास जाने से डरता था,
सबकी दुलारी थी,
भोली भली थी, प्यारी थी.
नम आँखों में सपने जगाती थी,
वो हर खाबों में आती थी.
हवाएं उसके गालों को,
जो छूकर जाती  थी
मौज से उसके,
मीलों तक फिजा लहराती थी.
गालों पे जिसके सूरज सी लाली थी,
नटखट थी वो मतवाली थी,
नशे सा एक इत्र घोलती चलती थी,
वो इधर से उधर डोलती चलती थी ..
वो परी थी..

8 टिप्‍पणियां:

  1. dhanyawad siddhartha ji..acha laga dekhkar ki aapne bhi mera post padhne aur comment karne ka samay diya :)

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  2. :)@nishant : i hope ki tumhe koi aisi pari mil gayi hai :)

    @muktesh ji : dhanyawad :)

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