मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

कभी मेरे इश्क की तुझे खबर मिले...

कभी मेरे इश्क की तुझे खबर मिले...


ख्वाबों में बसी है तू मेरे,

छुप छुप कर देखा करते हैं ,

कभी तू देख मुस्कुराएगी,

ऐसा हम सोचा करते हैं,

आँखें सोचे कभी नज़र मिले,

चाहूँ मेरे इश्क की तुझे कभी खबर मिले।


कहने से ये हम डरते हैं,

चंदा से बातें करते हैं,

उन चंचल पवनों की लहरों में ,

तुझको हम छेड़ा करते हैं,

मन तरसे तुझ सा हमसफ़र मिले,

मेरे इश्क की तुझे खबर मिले।


भाव भरे चंचल मन से,

तेरे धुन पे गया करते हैं,

तेरे पीछे छुप छुप कर हम,

तेरे घर तक जाया करते हैं।


जुल्फें जो चूमे हवाओं को,

जो तेरे गालो को छुकर आती हैं,

तेरे बारे में सब कुछ हम,

उन लहरों से पूछा करते हैं।


तुझको यादों में लाकर हम,

पागल हो जाया करते हैं,

कभी खुद में खोया करते हैं,

कभी खुद से बातें करते हैं।


घायल करती आँखें तेरी,

जैसे हों उनमे जहर मिले,

चाहूँ मैं तो बस इतना ही,

कभी मेरे इश्क की तुझे खबर मिले.

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