ए वक्त के उड़ते परिंदे॥
वक़्त के उड़ते परिंदे
लौट आओ इस जहाँ में
छुटते जो रिश्ते हैं अब
जीना है इनमें मुझे।
अब मिलाके मुझको उनसे
दिल को उम्मीदों में रखा
क्यूँ आया था इस जहाँ में
जब लौटना था तुझे।
ये फिजायें ये नजाकत
इन हवाओं की शरारत
किस जहाँ में मिलेगी
इतनी सच्ची मुहब्बत।
किस जहाँ में ये अबद्धता
कहाँ की वादी में ये रंगत होगी
जिंदगी को जीना सिखाये
कहाँ के रिश्तों में इतनी ताकत होगी।
तू समझता है ये बातें
फिर क्यूँ विदाई मांगता है
लौट आ तू इस जहाँ में
इन रिश्तों के बिना जीवन में क्या है?
मीठी बोली में चहचहाना
रोजाना किस्से सुनना सुनाना
उन मीठे लफ्जों में जो थी बातें
और किस जहाँ में मिलेगी?
यूँ बादलों में कभी छुप जाना
कभी उनके संग रोना और कभी उन्हें चुप कराना
ऐसे ये रिश्ते निराले
इसके बिन तू क्या करेगा?
नदियों का वो मीठा पानी
मीठे फल के ये दावत
इतना प्यारा सा जहाँ
क्यूँ छोड़ कर है जा रहा तू?
लौट आ तू लौट आ तू
ए वक्त के उड़ते परिंदे..
awwwwwssmmm yaar,... machau ,...
जवाब देंहटाएंmachau hai aman babu :)
जवाब देंहटाएंuttam atiuttam :)
जवाब देंहटाएंDhanyawad muktesh ji n seemant :)
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