बुधवार, 20 अप्रैल 2011

ए खुदा तेरी मौजूदगी किस काम की..

ए खुदा तेरी मौजूदगी किस काम की..

इस सादगी को लूटता है जमाना आज कल
दुष्टता दो ए खुदा,ये सादगी किस काम की.

उजाले में लोगों ने मुझे गम में देखा और हंस दिया
फिर अंधकार ही सही है, रौशनी किस काम की.

गम के आँचल में पल रही है मुहब्बत यहाँ
नफरत की इस दुनिया में, है मुहब्बत रही किस काम की.
 
दुःख मेरा अब सैलाबों सा छलक उठा है आँखों से
मौत दो मुझको खुदा अब जिंदगी किस काम की.

दुनिया के इस हालात में अपने होने का एहसास दे
इसी हालात में जीना हो तो तेरी मौजूदगी किस काम की.

 

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