बुलंद घेरों से घिरा,
वो घर आपका ,
मेहफ़ूज़ हैं दुनिया से,
ये सोचते हैं क्या,
चौड़ी दीवारों के अंदर,
जो अनबन हुआ ,
दरारों की निगाहों से
देखता है कोई।
बाहर जो गए,
मुखौटा लिए हुए,
सोचा की कोई
कुछ जानता नहीं,
दरारों ने निगाहों से
देखा जो भी था,
बनते हुए किस्सों में,
अब वो मशहूर है।
यकीं है कि राज,
अपनों में हैं दबे,
कान दीवारों के भी
रहते हैं खड़े,
बाहर आये हो
मुखौटा लिए हुए,
किस्सों में दिख रहा
चेहरा जनाब का।
दूसरे शहर में
सोचा मेहफ़ूज़ हैं ,
अपनों के साथ हैं
बड़े आराम से,
जो कुछ हुआ,
कोई देखा न सुना,
पर फैले हैं किस्से
अपनों के रास्ते।
वो जो कमरा है,
हिफाज़त में पहरेदारों की,
जिसकी चाबी नहीं ,
जो खुला भी नहीं,
कितनी जायदाद है,
उन्हें पता भी नहीं,
चर्चे हैं शहर में,
उसके विस्तार से,
हर इक बात हुई है,
यहाँ पहरेदारो से।
लगता है उन्हें,
कि वो मेहफ़ूज़ हैं,
दरारों की निगाहों से,
दीवारों के कान से,
दुनिया बड़ी छोटी है जनाब,
जो महफूज़ है आपके ख्याल में ,
वो ही मशहूर है यहाँ बाजार में।
Awesome Lines Sir.👌🙏
जवाब देंहटाएंNice..Deep hai👌👏
जवाब देंहटाएंThere are ways in which I can relate to it.
जवाब देंहटाएंअति सुंदर अमन भैया
जवाब देंहटाएंबहुत ही अनोखी पंक्तियां