खुद को फिर भी कसमकस में पा रहे हैं,
कहाँ है आजादी तेरी यादों से हमें ,
तनहा हो रहे हैं खुद को तडपा रहे हैं ..
रोयें या हसें, कुछ समझ नहीं आता,
आँखों की नमी को हंस कर दबा रहे हैं,
पास आओ न एक बार ए जाना ,
तेरी आस में बड़ी मुद्दत से जिए जा रहे हैं..
तेरी यादों में जिंदगी है या दर्द का साया ,
किसे फ़िक्र है हम तो यादों में तुम्हे लाये जा रहे हैं ,
कभी खुली आँखों से कभी बंद आँखों से,
सपने तो हम बड़े अरसे से सजाये जा रहे हैं..
हर रोज हम तुम्हे भुला रहे हैं
या प्यार तेरे लिए बढ़ाये जा रहे हैं..
हर रोज एक ही बात बदल बदल कर
खुद को समझाए जा रहे हैं..
ये सांसें कांपती हैं दिल में जाने के पहले ,
दिल को कुछ यूँ हम जलाये जा रहे हैं..
पास आओ न एक बार ए जाना ,
कब से तेरी आस में पलकें बिछाये जा रहे हैं..
"kuch" likha hai :)
जवाब देंहटाएंDhanyawad manish :)
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