तुझे मैं खुद में मिला लेता था..
आंसुओं को पलकों में छुपा लेता था
दर्द-ए-दिल यादों में दबा लेता था
जो पड़ते थे जख्म मुझमे तेरी यादों से
चुप रहता था, कुछ खून का कतरा बहा लेता था..
तनहा जीता था मैं महफ़िल में
तेरे दर्द में खुद को जला लेता था
तेरे मोहल्ले से गुजरता था तुझे देखने को
खुद को चादर में छुपा लेता था..
सासों को रुकने की तमन्ना थी
सोने के लिए हर रोज दवा लेता था
वो बारिश ही था साथी मेरा
साथ उसके मैं अपने आंसू बहा लेता था..
मुहब्बत की आग आज भी जल रही मुझमे
कोशिश क़ी बुझाने की भी हमनें
हर बार जो आये हम सहारा लेकर
ये दिल है जो आग और बढ़ा लेता था..
मौत की जरूरत तो थी नहीं हमें
हर पल मौत सी ही सजा देता था..
तुझे भूलने की जितनी भी कोशिश करता
तुझे और भी मैं खुद में ही मिला लेता था..
"मौत की जरूरत तो थी नहीं हमें
जवाब देंहटाएंहर पल मौत सी ही सजा देता था.."
dard bakhoobi piroya hai :)
Dhanyawad manish :)
जवाब देंहटाएंkya baat hai..:) lazwaab..:)
जवाब देंहटाएंThanks :)
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