सोचूं अब तुझको भुलाया जाये ..
बातों ही बातों में बात न बढाया जाये
हर रोज सोचूं तुम्हे आज भुलाया जाये
हर कोशिश कर ली मैंने अब तक
न जाने कैसे इस दिल को समझाया जाये
काँच के ख़ाब टूटे और बिखर गए
अब उम्मीदों के महल को गिराया जाये
की सोचूं अब तुम्हे भुलाया जाये ..
भटक चूका हूँ बहुत
न तू मिले न तेरा ठिकाना आये
उलझनों में उलझा हूँ मैं
की अब खुद को बाहर निकाला जाये
जिंदगी को कुछ संभाला जाये..
बस सोचता हूँ पर चाहता ही नहीं
की तू कभी कहीं मुझसे दूर जाये
वो तो आंसू है मेरे, दर्द मेरे
वरना कौन चाहे की खुद के पन्नों से
अपनी जिंदगी को मिटाया जाये ..
कौन चाहे तुझ सी परी को भुलाया जाये ..
m sharing it on FB Aman bhai..
जवाब देंहटाएंItni pasand aa gayi poem :) thanks :)
जवाब देंहटाएंMAST HA YAAR!!!
जवाब देंहटाएंThanks siddhartha ji :)
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