गुरुवार, 5 मई 2011

मेरी KGP की जिंदगी..कुछ शब्दों में..

मेरी KGP की जिंदगी..कुछ शब्दों में..
 
कभी यहाँ आना था हमें
हमनें अपनी जान लगायी थी
मेहनत की, पसीना बहाया था
और मेहनत रंग लायी थी.   
खुदा से दुआ की हर पल
खुद की भूली परछाई थी
हमने लाखों की दौड़ में
अपनी जगह यहाँ बनायीं थी.

जो रूबरू हुए थे यहाँ से   
वो मिटटी की खुशबू
वो बारिश का पानी
वो शांत सुहानी शाम
वो लोगों की भीड़ 
वो अजीब सी हंसती ख़ुशी 
वो जज्बात, 
वो चमकते चेहरे  
अब भी याद आते हैं.

पहला साल
खुद में खोया था
न हंसा कभी
न कभी रोया था
क्लास का पता नहीं
पर जम कर सोया था
न ज़माने की खबर थी मुझे
न ज़माने को मेरी थी खबर
न ज्यादा दोस्ती यारी थी
न साथ कोई नारी थी
खुद में रहता था
खाता पीता सोता था
न जाने कैसे बीता पहला साल
बस ऐसा था हमारा हाल.

दूसरे साल में हालत ख़राब थी
मिला सबको senior हॉल
गया तो हो गयी रैगिंग शुरू
हम हुए चेले और वो थे गुरु
आलतू फालतू फंडे देते थे
अच्छे कम ज्यादा गंदे देते थे
रैगिंग खत्म हुआ 
फिर हुआ शुरु इल्लू
दिल भी कहने लगा तब तक
थोड़ी चैन की साँस ले लूँ
पर तुरत आया हॉल इलेक्शन
बढ़ गया फिर हमारा टेंशन
जैसे भी बीते वो उलझे दिन
पर वो पल अब भी याद आते हैं
हम सोचते हैं और अब भी मुस्कुराते हैं.

तीसरा साल सुरु हुआ
अब रैगिंग लेने का समय था
इंटर्नशिप लगवाने की दौड़ थी
पर पहली बार हम
खुले सांड की तरह घूमना सुरु किये
चेला का status हटा के गुरु किये
सोसाइटी, हॉल, डेप 
हर समय मस्त होता था
कभी कोई मेरा लेता था
कभी मैं किसी का लेता था
आखिर में हम अमरीका में इन्टर्न पर गए
घूमे फीरे, मजे किये और वापस आ गए.


चौथा साल बड़ा ही शांति भरा था
न GRE ,न GATE , न placement ,न CAT, न GMAT  देना था
सब को तैयारी करते देखना और मजे लेना था 
बस दिन भर बैठ के समय काटना था
मस्ती करनी थी, भाट मरना था
कॉलेज लाइफ की पूरी कसर निकल दी
मस्ती की हर जगह, मजा आ गया
कुछ किया तो सायद वो btp था.
और उसमे भी मैं छा गया.

अब अंतिम समय आया है
हमें यहाँ से जाना है
हमें लगाव नहीं यहाँ से
ये कहना तो बस
खुद को शांत करने का बहाना है
वही अजीब सी ख़ुशी में अब गम  है 
आँखें फिर से आज नम हैं
कैसे शुक्र अदा करें सबका
की हर पल अनमोल था मेरा
इनका असर देखेंगी आने वाली सदियाँ
इन पलों को सोच जब हम मुस्कुराएंगे
कभी कीमत लगनी होगी तो
हम खुद को लुटा जायेंगे
ये पल हम कभी न भूल पायंगे.   

( If you are reading this, tell me something about yours :) )



 

रविवार, 1 मई 2011

वो दूर तो गया पर जिंदगी से जाना भूल गया ..

वो दूर तो गया पर जिंदगी से जाना भूल गया ..

आंसुओं से लिखे पन्नों के संग 
रैन जलते हैं मेरे,
कोई दूर गया पर
अपना प्यार ले जाना भूल गया.


 वो कहता है कि हँसता हूँ मैं ,
उसके जाने का असर कहाँ है 
मेरी हंसी में गूंजते गम को देखे तो
की कोई कैसे मुस्कराना भूल गया.  

टूटते बिखरते 
गिरते संभलते 
सपनों के टुकड़े चुनते
मैं नए सपने बनाना भूल गया .
कोई दूर गया पर
सपने ले जाना भूल गया.

 बातों ही बातों में
कई जवाब अधूरे ही रह गए
उनको ढूंढने में भटका हूँ मैं
वो सारे सवाल ले जाना भूल गया.
 
वो दिन अब भी 
हर पल जीते हैं यहाँ 
वो दूर तो गया
पर जिंदगी से जाना भूल गया
वो यादों से जाना भूल गया..

न आंसू बचे, न पन्ने, पर
न कहो कि मैं वो जमाना भूल गया..
वो दूर गया मुझसे
पर खुद को ले जाना भूल गया..