शनिवार, 18 जून 2011

कुछ पंक्तियाँ..

कुछ पंक्तियाँ..



"गली में वीरानियों से मैं गुजर रहा था,
दिल चुपके चुपके तेरी बातें कर रहा था,
वो दिन याद आये वो सपने याद आये और 
जिंदगी कांच के खाबों को टुकड़ों में बदल रहा था."

" तू है तभी तो हूँ मैं दीवाना 
तेरी तरह कोई हसीं कहाँ है,
तेरी हँसी से है ये जिंदगी,
तेरे बिना जिंदगी कहाँ है."

"कुछ पथ्थरों से ताजमहल बनते हैं
कुछ आशिकों पे उठते हैं और गजल बनते हैं"

" अब जो तन्हाई से मुहब्बत की
तन्हाई भी सताने लगी
चुपके से तेरी मुहब्बत को
फिर से पास लाने लगी "

" कुछ रोज पहले तेरी यादों में मेरा आना जाना था
दरवाजे बंद करके तू कहता है कि मैं भूल गया तुझको."





4 टिप्‍पणियां:

  1. bahoot khoob
    "कुछ पथ्थरों से ताजमहल बनते हैं
    कुछ आशिकों पे उठते हैं और गजल बनते हैं"
    bahut hi behtareen nazm :)

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  3. @manish..Thanks :)
    @muktesh ji..dilli ki abohawa me rang to bahut hai..aaiye yahan phir dikhte hain :)

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